एससी-एसटी के आरक्षण में बन सकती है सब कैटिगरी – SC
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे के अंदर कोटा को लेकर बहुत बड़ा फैसला सुनाया है। यह फैसला इतना बड़ा है कि इसका असर झारखंड समेत कई राज्यों पर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले की सुनवाई हो रही थी। कोर्ट ने पूर्व में दिये गये फैसले को बदलते हुए यह आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस एससी और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थे। इनमें जस्टिस बेला त्रिवेदी की राय बेंच के दूसरे न्यायाधीशों से अलग थी। शीर्ष अदालत ने 2004 के अपने पूर्व के फैसले को पलटते हुए यह आदेश दिया है। कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में जाति आधारित आरक्षण को संभव बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बदला फैसला?
जस्टिस बीआर गवई ने अपने फैसले में लिखा कि ईवी चिन्नैया फैसले मामले में कुछ खामियां थीं। यहां आर्टिकल 341 को समझने की जरूरत है जो सीटों पर आरक्षण की बात करता है। उन्होंने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि आर्टिकल 341 और 342 आरक्षण के मामले को डील नहीं करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण (Sub Classification) करने की शक्तियां हैं। कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण के आधार को राज्यों द्वारा मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए।
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने क्यों किया विरोध?
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बेंच के दूसरे जजों की राय के विपरीत अपने फैसले में लिखा कि मैं बहुमत के फैसले से अलग राय रखती हूं। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं जिस तरीके से तीन जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को भेजा था। तीन जजों की पीठ ने बिना कोई कारण बताए ऐसा किया था।
न्यूज –डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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