सप्तम कालरात्रि
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि की आराधना का है। आदि काल में वरदान पाकर महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ जैसे महाभयानक राक्षस तरह-तरह के अत्याचारों से पीड़ित करने लगे तो धर्म इस धरा से गायब होने लगा। धरती में रहने वाले मानव के आचार-विचार भ्रष्ट हो गए सर्वत्र राक्षसी प्रवृत्तियों का बोल बाला होने लगा। देव पूजन, माता-पिता, गुरू, ब्राह्मणों को भी तिरष्कृत किया जाने लगा। तब दैत्यों के अत्याचार से मुक्ति के लिए कालरात्रि प्रकट होती है। जो सर्वविधि कल्याण करने वाली और दैत्य समूहों का संहार करके इस धरा के मानव की रक्षा करती हैं तथा देव समुदाय को अभय प्रदान करती हैं। काली मां का नाम उनकी शक्ति के कारण पड़ा है। जो सबको मारने वाले काल की भी रात्रि है अर्थात काल को भी समाप्त कर देती है उनके सम्मुख वह भी नहीं ठहर सकता है। काल की विनाशिका होने से उनका काल रात्रि नाम पड़ा। काल का अर्थ समय से है और समय को भी काल के रूप में जाना जाता है। जिसका अर्थ मृत्यु से है। काल जो सभी को एक दिन मार देता है। उससे भी महाभयानक शक्ति का स्रोत मां काली हैं। जिनके सम्मुख दैत्य क्या? साक्षात काल भी नहीं बच सकता है। वह मां काली इस संसार की रक्षा करती है। और अपने श्रद्धालु भक्तों को भूत, प्रेत, राक्षस, बाधा, डर, दु:ख, दरिद्रता, रोग, पीड़ाओं से बचाकर भक्त को अभय देने वाली हैं। जिससे भक्त को सुख समृद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा के इस सातवें रूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है जो इस संसार में आदि काल से सुप्रसिद्ध है। इन मां की मूर्ति यद्यपि बड़ी ही विकराल प्रतीत होती है, जो परम तेज से युक्त है जो भक्तों के हितार्थ अति भयानक कालिरात्रि के रूप मे प्रकट होती हैं। मां की चार भुजाएं जिसमें दाहिने हाथ में ऊपर वाला हाथ वर मुद्रा धारण किए हुए जो संसार में भक्त लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार वरदान देता है तथा नीचे वाला अभय मुद्रा धारण किए हुए लोगों को निर्भय बना रहा है। बायें हाथ में ऊपर वाले हाथ में कटार और नीचे वाले में लोहे का काटा नुमा अस्त्र धारण किए है। इनके बाल घने काले और बिखरे हुए रौद्र रूप में दिखाई देते हैं। और तीन आंखें हैं, जो अत्यंत भयंकर व अतिउग्र और ब्रह्माण्ड की तरह ही गोलाकार है जिसमें बादल की विजली की तरह ही चमक हैं, यह घने काले अंधकार की तरह प्रतिभासित हो रही है। इनकी नासिकाओं सांस से अग्नि की अति भयंकर ज्वालाएं निकल रही है। कालि रात्रि के गले में दिव्य तेज की माला शोभित हो रही है और यह गर्दभारूढ़ है। इनकी अर्चना से सभी प्रकार के कष्ट रोग दूर होते है जीवन में सुख शांति की लहर होती है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार