झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा भी अब रेस हो गयी है। झारखंड में भाजपा द्वारा चुनाव प्रभारी बनाये गये शिव राज सिंह चौहान और सह चुनाव प्रभारी बनाये गये हिमंता बिस्वा सरमा लगातार झारखंड का दौरा कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं से मिलकर उन्हें गुरुमंत्र दे रहे हैं। आज भी झारखंड के ये दोनों भाजपा प्रभारी भाजपा कार्यकर्ताओं से मिलेंगे और उन्हें जीत का मंत्र बताते हुए जीत की रणनीति तैयार करेंगे।
यह तो हो गयी जीत की तैयारी की बात। भाजपा में असल मुद्दे पर तो दूर-दूर तक चर्चा हो ही नहीं रही है। मुद्दा यह है कि भाजपा ‘राजा’ के बिना, सिर्फ अपने सेनापतियों के भरोसे युद्ध के मैदान में उतर रही है। मतलब मुख्यमंत्री का उसका चेहरा कौन होगा, भाजपा में यह सवाल ही लापता है। कुछ नाम अगर ले भी लें तो भी आप दावे के साथ नहीं कह सकते कि यही मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकता है। भाजपा अगर किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा बना भी ले तो उस चेहरे के साथ चुनाव के भी साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, इसे आलाकमान अच्छी तरह से समझ सकता है। शायद इसलिए भाजपा मुख्यमंत्री चेहरे के साथ चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाहती।
मुख्यमंत्री चेहरे के बिना चुनाव मैदान में उतरना भाजपा की समस्या हो सकती है, लेकिन अंततः तो किन न किसी को मुख्यमंत्री घोषित करना ही होगा। झारखंड के अगले भाजपा मुख्यमंत्री की बात आती है तो सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का नाम ही सामने आता है। यह सभी जानते हैं कि बाबूलाल मरांडी भाजपा में वापस ही इसीलिए हुए थे कि वह एक बार फिर से राज्य का मुख्यमंत्री बन सकें। बाबूलाल के साथ सबसे बड़ा प्लस पाइंट यह है कि वह राज्य में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के बाद सबसे बड़े आदिवासी नेता है। अगर ऐसी नौबत आती भी है कि उन्हें मुख्यमंत्री न भी बनाया जाये। ऐसी स्थिति में शायद बाबूलाल फिर एक बार अपनी नयी राह तलाशने लग जायें। क्योंकि राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर ही उन्होंने अलग राह पकड़ी थी और अपनी नयी पार्टी बनायी थी।
एक नाम पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का था तो उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बनाकर एक तरह से उनकी सक्रिय राजनीतिक से विदाई करवा दी गयी है। अगर उनके सक्रिय राजनीति में लौटने की कुछ उम्मीदें बची भी हों तो भी ओडिशा के राजभवन में उनके बेटे द्वारा घटित घटना से भी उनकी छवि को धक्का लगेगा। झारखंड के एक और पूर्व मुख्यमंत्री है, अर्जुन मुंडा, भाजपा की इन पर भी निगाहें हैं। लेकिन आदिवासी बहुल क्षेत्र खूंटी में लोकसभा चुनाव में इनकी हार ने इन्हें बैकफुट पर डाल रखा है। ले-देकर एक नाम ही बचता है- भाजपा के नेता प्रतिपक्ष अमर बाऊरी का। बाऊरी काफी तेज-तर्रार आदिवासी नेता हैं। उनकी साफ-सुथरी छवि भी उन्हें झारखंड की कुर्सी तक पहुंचा सकती है। लेकिन भाजपा के केन्द्रीय कमान में पिछले चुनावों में जिस प्रकार से मुख्यमंत्री बनाने के मामले में अपने फैसलों से चौंकती रही है, अगर वैसा ही झारखंड में भी हुआ तो यहां भी कोई अप्रत्याशित चेहरा सामने आ सकता है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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