विनोबा भावे विश्वविद्यालय इन दिनों वित्तीय राशि के घोटाले को लेकर काफी चर्चा में है. विनोबा भावे विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के पूर्व सदस्य सांवरमल अग्रवाल (Sanwarmal Agarwal) ने 2010-11 में अवकाश प्राप्त विश्वविद्यालय शिक्षकों की पेंशन राशि से काटे गए 22 लाख रुपए, इनकम टैक्स के कार्यालय में अब तक जमा नहीं करने को लेकर विवि प्रशासन से सवाल पूछा है. उनके मुताबिक यह राशि कहां गई, इसकी कोई जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नहीं दी जा रही है.
’44 लाख से भी अधिक का घोटाला’
इतना ही नहीं. वित्त विभाग झारखंड सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय में 44 लाख रुपए से अधिक की राशि की हेरा फेरी करने का मामला भी काफी चर्चा में है. रिपोर्ट के अनुसार₹800000 के काजू और किशमिश खरीदे गए. 61000 की एक ट्रेड बिन मशीन खरीदी गई. साथ ही साथ₹9000 में एक थर्मामीटर भी खरीदने की बात सामने आ रही है. यह मामला काफी गंभीर है. विनोबा भावे विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के पूर्व सदस्य सांवरमल अग्रवाल ने इस मामले में महामहिम से आग्रह किया है कि विनोबा भावे विश्वविद्यालय के वित्तीय मामलों की पिछले 15 वर्षों की करायी जानी चाहिए, ताकि राज्य सरकार यूजीसी आदि संस्थाओं से मिलने वाली राशि कहां खर्च हुई और किस मद में हुई, इसकी स्थिति स्पष्ट हो सके.
सिंडिकेट के पूर्व सदस्य सांवरमल अग्रवाल का विवि प्रशासन से सवाल
सिंडिकेट के पूर्व सदस्य सांवरमल अग्रवाल ने आरोप लगाते हुए कहा है कि अब तक के इन दो मामलों से यह स्पष्ट होता है कि विद्यालय प्रशासन शिक्षा की ओर ध्यान न देकर केवल और केवल लूट में लगा हुआ है. उनका यह भी आरोप है कि विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए एक महंगी कार खरीदी गई. इसकी भी खरीद पर अंकेक्षण रिपोर्ट में संदेह है. इतना ही नहीं , उन्कहोंने हा यह जा रहा है कि विश्वविद्यालय के फर्नीचर खरीद, रंग रोगन करने तथा अन्य मामलों में जो राशि खर्च की गई है, उसके लिए क्या विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा वित्त समिति सिंडिकेट जैसे संस्थाओं से पूर्व में स्वीकृति लेकर यह कार्य किया गया था. अगर नहीं तो फिर यह राशि कैसे खर्च की गई और इसका भुगतान सिंडिकेट द्वारा करने का आदेश कैसे स्वीकृत किया गया. यह भी जांच का विषय है. यहां यह उल्लेखनीय है कि सिंडिकेट विश्वविद्यालय की वित्तीय मामलों के मुख्य रूप से संरक्षक समिति है और किसी भी प्रकार की खरीदारी या कार्यों के लिए वित्त समिति द्वारा उनके संबंध में प्राप्त सूचना के अनुसार पहले ऐसे खरीदारी पर स्पष्ट आदेश और उनकी आवश्यकताओं पर जांच कर कोई निर्णय देती है, और वित्त समिति से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर ही सिंडिकेट द्वारा इस प्रकार की खरीदारी पर अंतिम निर्णय लिया जाता है. लेकिन ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने झारखंड राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के विपरीत जाकर इस प्रकार के कार्यों को अंजाम दिया है. सिंडिकेट के पूर्व सदस्य सांवरमल अग्रवाल ने कहा है कि वित्त विभाग के द्वारा भेजी गई कुलसचिव की रिपोर्ट में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि उक्त मामलों में तत्काल एक माह के अंदर कार्रवाई करते हुए राशि वसूल की जाए और संबंधित व्यक्तियों पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई की जाए. जिस समय का यह अंकेक्षण रिपोर्ट है , उस वक्त विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर डॉ मुकुल देवनारायण सिंह आसीन थे.
न्यूज़ डेस्क/ समाचार प्लस, झारखंड- बिहार