परिवार की पार्टी JMM की नहीं रहीं Sita Soren, परिवार में पड़ी अब तक की सबसे बड़ी फूट

Sita Soren is no more of the family party, biggest rift in the family

Sita Soren BJP: राजनीतिक महत्वाकांक्षा बड़ी चीज है, उसका परिणाम है कि आज झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पुत्रवधु और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन आज जिस पार्टी से विधायक हैं, उसे छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गयी है। समझा जा सकता है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण ही सीता सोरेन ने अपनी पारिवारिक पार्टी का दामन छोड़ा है। सीता सोरेन ने भाजपा ज्वाइन करते समय परिवार और पार्टी में सम्मान नहीं मिलने को कारण बताया। यह कारण ठीक भी हो सकता है, क्योंकि जब अब तक घर में रहने वाली हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को राजनीति में कदम बढ़ाने के लिए तरजीह दी जा रही हो तो तीन बार की विधायक सीता सोरेन को यह बुरा लगेगा ही। इसलिए उनकी पीड़ा को समझा जा सकता है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब झामुमो में रहते हुए ऐसी पीड़ा किसी दूसरे बड़े नेता को नहीं हुई हो। इससे पहले भी झामुमो टूटी है और बड़े नेताओं ने पार्टी का दमन छोड़ा है। याद कीजिए, सूरज मंडल को। सूरज मंडल झारखंड के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन जब 1993 में मनमोहन सरकार को बचाने के लिए हुए कथित कैश कांड में उनका भी नाम आ गया तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। झामुमो से अलग होने के बाद सूरज मंडल ने अपनी पार्टी बनायी थी- झारखंड विकास दल।

स्टीफन मरांडी, झामुमो ही नहीं, झारखंड के कद्दावर नेताओं में इनका नाम शुमार होता है। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड विधान सभा के सदस्य रहे। उन्हें चौथी झारखंड विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर के रूप में चुना गया। 2005 के झारखंड विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने के कारण उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़ दिया और शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन के खिलाफ दुमका निर्वाचन क्षेत्र से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि वह चुनाव हार गये थे।

झारखंड के दिग्गज नेताओं में एक और नाम है साइमन मरांडी का। साइमन मरांडी 1989 से 1996 तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए। साइमन मरांडी चार बार विधायक भी रहे हैं। हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास मंत्री रहे साइमन मरांडी 2014 में, भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन 2017 के उपचुनाव में  मराडी झारखंड मुक्ति मोर्चा में फिर लौट आए।

झामुमो के टिकट से सांसद रहे हेमलाल मुर्मू भी पार्टी छोड़ चुके हैं। वह 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। 2014 और 2019 में भाजपा ने राजमहल से मौका भी दिया, लेकिन दोनों बार वह चुनाव हार गये। इसके बाद 2023 में हेमलाल झामुमो में वापस लौट आये।

इन दिग्गजों के अलावा भी और कई नाम हैं जिन्होंने झामुमो का साथ छोड़ा है। ये नाम भी बड़े नाम हैं। कुणाल षाड़ंगी आज भाजपा में हैं, लेकिन इससे पहले वह झामुमो के सक्रिय सदस्य रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व केंद्रीय प्रवक्ता और लोक लेखा समिति (पीएसी) के सदस्य रहे कुणाल षाड़ंगी 2019 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।

अमित महतो आजसू के टिकट पर सिल्ली से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने 2014 में विधानसभा चुनाव जीता था। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्य थे और झारखंड राजनीतिक पार्टी में युवाओं का चेहरा माने जाते थे। अमित महतो अब आजसू पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं और 6 अप्रैल 2022 को उन्होंने एक नई राजनीतिक पार्टी खतियानी झारखंडी पार्टी का गठन किया है

जय प्रकाश भाई पटेल मांडू सीट से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के विधायक रह चुके हैं। मगर 2014 के चुनावों में वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में माडू से विजयी हुए थे। जयप्रकाश भाई पटेल स्वर्गीय टेक लाल महतो के पुत्र हैं।

एक और नाम है जिसकी चर्चा किया जाना बेहद जरूरी इसलिए है, क्योंकि वह चेहरा आज भाजपा का न सिर्फ बड़ा चेहरा है, बल्कि केन्द्र सरकार में बड़े पद पर भी विराजमान है। यह नाम है खूंटी के सांसद और केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का। 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले अर्जुन मुंडा और झारखंड ही नहीं, देश में भाजपा का बड़ा चेहरा है। वह वर्तमान में जनजातीय मामलों के मंत्री तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्री भी हैं। अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री रहने के साथ झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक और नेता शशि भूषण सामड भी अपनी पार्टी से नाता तोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।

इतने सारे नेताओं में आज झामुमो की बड़ी नेता सीता सोरेन का नाम भी शामिल हो गये है। लेकिन यहां एक अंतर है। यह अंतर यह है कि अबकी बार टूट शिबू सोरेन परिवार में हुई है। अजय राय, विनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की शुरुआत की थी। कालांतर में झामुमो शिबू सोरेन के हाथ में आ गयी और उन्होंने बखूबी महाजनी-सूदखोरी के खिलाफ लड़ाई के साथ बिहार से झारखंड को अलग करने के लिए लड़ाई लड़ी। और आज उनकी आंखों से सामने राजनीतिक रूप से उनका परिवार अलग हो गया।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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