गया के श्याम सुंदर चौहान बने दशरथ मांझी, 2000 फीट ऊंचे पहाड़ पर बना दी सड़क

GAYA:  बिहार के गया की धरती ने एक से बढ़कर एक विरले को संजोया है. माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने छेनी हथौड़ी से गहलौर घाटी की पहाङी का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था और सदा के लिए इतिहास के पन्नों में अमर हो गए. इस क्रम में गया के श्याम सुंदर चौहान ने 2000 फीट की ऊंचाई वाले वाणावर पहाड़ के विशाल चट्टानों को काटकर न सिर्फ सुगम रास्ता बना दिया, बल्कि पांच पहाड़ों को भी जोड़ दिया. श्याम सुंदर चौहान को 25 साल पहले अचानक जुनून हुआ था, कि वाणावर पहाड़ की चोटी पर रहे बाबा सिद्धेश्वर नाथ ( प्रसिद्ध शिवलिंग) मंदिर तक पहुंचने में भक्तों को काफी परेशानियां होती है. पहाड़ भी अलग-अलग हैं. फिर क्या था, श्यामसुंदर चौहान ने अपने मन में ठान लिया, कि वह सुगम रास्ता बनाएंगे. इसके बाद वाणावर पहाड़ के विशाल चट्टानों की को छेनी हथौड़ी और खंती की मदद 80 की उम्र में भी हौसला बरकरार काटना शुरु कर दिया.

श्याम सुंदर चौहान गया जिले के बेलागंज प्रखंड के भलुआ वन अंतर्गत बेलदारी टोला के रहने वाले हैं. तकरीबन 25 साल पहले जब उनकी उम्र 55 साल की थी, तब अचानक इन्हें एहसास हुआ, कि वाणावर (बराबर पहाड़) की चोटी पर स्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर को पहुंचने में भक्तों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. फिर क्या था, श्याम सुंदर चौहान ने सुगम रास्ता बनाने की ठान ली. बेलागंज के हथियार बोर के रास्ते से जितने पहाड़ मिले, सबको भेदना शुरू कर दिया. उनकी छेनी हथौड़ी इस कदर चली की 25 सालों में उन्होंने बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर तक पहुंचाने के लिए 2000 फीट में से 1500 फीट की ऊंचाई तक करीब (3 किलोमीटर) में जितने भी पहाड़ के पत्थर मिले, सबको सुगम रास्ता बनाने के जुनून में काट दिया. आज 1500 फीट की ऊंचाई तक एकदम से सुगम रास्ता बन गया है, जो असंभव को संभव करने जैसा है.

बड़ी बात यह है, कि 25 वर्षों तक वाणावर पहाड़ की चोटी तक सुगम रास्ता बनाने की जिद में जितने पहाड़ी पड़े, विशाल पत्थर मिले, सबको इन्होंने छेनी हथौड़ी की मदद से काट डाला. आज इनकी उम्र तकरीबन 80 साल की हो चुकी है, लेकिन हौसला जो 25 साल पहले था, वह आज भी बरकरार है. इनकी बूढी हड्डियों में जो तेजी दिखती है, वह एक बड़ा उदाहरण है, यह अद्भुत साहस और सकारात्मक जुनून की एक मिसाल भी है.

श्याम सुंदर चौहान ने 55 साल की उम्र में पहली बार छेनी हथौड़ी से पहाड़ को काटना शुरू किया, तब उनका नियम था, कि हर सोमवारी को यह काम करेंगे. भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद कहीं या कुछ और कि उन्होंने सोमवार को ही शिव भक्तों के लिए यह काम करने का दिन चुना था. हालांकि धीरे-धीरे जब सुगम रास्ता बनता चला गया, तो इनका जोश और जुनून भी दिन ब दिन बढ़ता चला गया. अब यह सप्ताह में कई बार वाणावर पहाड़ पर चढ़ जाते हैं और अपने काम में लीन हो जाते हैं. इनका यह साहस देख हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है, आज कम उम्र के युवक भी 2000 फीट तकरीबन 4 किलोमीटर की ऊंचाई पर रहे वाणावार पहाड़ तक पहुंचने के लिए सोचते होंगे, लेकिन श्याम सुंदर पासवान 80 साल की उम्र में भी धड़ल्ले से 2000 फीट की ऊंचाई वाले वाणावर पहाड़ तक पहुंच जाते हैं. 1500 फीट तक सुगम रास्ता बनाने का लक्ष्य इन्होंने पूरा कर लिया है. शेष 500 फीट के लक्ष्य को पूरा करने से पहले इन्होंने एक और मिसाल कायम किया है, वह यह है, कि अब इनका जुनून है, कि बनाए गए सुुगम रास्ते को पहाड़ की तोड़ी गई चट्टानों से ही सीमेंट से जोड़कर पूरी तरह से सुगम बनाना है. 1500 फीट तक सीमेंट और पत्थर जोड़कर सुुगम यानि की पूरी तरह से प्लास्टरनुमा मार्ग का इन्होंने जो जुनून सोचा, वह पूरा भी कर रहे हैं. उनका यह जुनून लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में भी है, क्योंकि यह निस्वार्थ भाव से तन मन और धन से इस नेक काम में जुटे हुए हैं.
श्याम सुंदर पासवान किसी की मदद नहीं लेते, कभी कभार कोई खुद आगे आ जाए और सुगम मार्ग बनाने में थोड़ी मदद कर दे, तो उसे नहीं रोकते, लेकिन पिछले 25 सालों से अकेले ही पहाड़ का सीना चीर कर सुगम रास्ता बनाने में जुटे श्याम सुंदर पासवान सीमेंट से प्लास्टर करने में किसी से एक चवन्नी की भी मदद नहीं लेते हैं. यदि कोई मदद करने की बात करे, तो सीधा इनकार कर देते हैं. आज भी वे अपनी कमाई का 90 फ़ीसदी से भी ज्यादा हिस्सा हथियार बोर के रास्ते वाणावर पहाड़ पर जाने के लिए सुगम मार्ग बनाने में खर्च कर रहे हैं.

बड़ी बात यह है, कि इस शख्सियत ने वाणावर पहाड़ पर बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए न सिर्फ सुगम रास्ता बना दिया है, बल्कि इससे भी बड़ी बात यह है, कि इन्होंने पांच पहाड़ों को जोड़ दिया है. मुरली पहाड़, लोकेशन पहाड़, पंछी तीर्थ, गणेश चौकी और पांचवा वाणावर पहाड़ को इन्होंने सुगम मार्ग बनाकर एक दूसरे से जोड़ दिया. अब मार्ग ऐसे हैं, कि बगैर किसी मुश्किल से कोई भी व्यक्ति या भक्त वाणावर पहाड़ की चोटियों पर गया के हथियार बोर के रास्ते से आसानी से पहुंच सकता है. श्याम सुंदर चौहान के इस जुनून से हजारों लोगों को काफी फायदे होंगे. सावन के दिनों में जब वाणावर पहाड़ की चोटियों पर जाने के लिए और बाबा सिद्धेश्वर नाथ के दर्शन करने के लिए लोग पहले जहां काफी मुश्किलों से जूझते थे, अब वही आसानी से पहुंच जा सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह होगी, कि गया के लोग तीन-चार किलोमीटर की दूरी तय करके ही जहानाबाद के क्षेत्र में पहुंच जाएंगे. पहले 15 से 20 किलोमीटर की दूरी तय कर जाने वाले लोगों को अब सहूलियत होगी. श्याम सुंदर चौहान के सुगम मार्ग ने कई किलोमीटर की दूरी को एकदम से कम कर दिया है. बता दे, कि एक बड़ी आबादी आज भी पहाड़ के रास्ते ही कई स्थानों को आती-जाती है. ऐसे में पांच पहाड़ को जोड़ दिए जाने से हजारों ग्रामीणों को इसका सीधा लाभ मिल सकेगा.

वही, इस संबंध में श्याम सुंदर पासवान बताते हैं, कि वे हमेशा वाणावर पहाड़ पर बाबा सिद्धेश्वर नाथ के दर्शन करने को जाते थे. एक बार प्रेरणा मिली, कि लोगों को बाबा सिद्धेश्वर नाथ तक पहुंचने में काफी परेशानी होती है, तो हमने सोचा कि पहाड़ के पत्थरों को काटकर सुगम रास्ता बना दें. जब मेरी उम्र 55 साल की थी, तो पहाड़ के चट्टानों को काटकर सुगम रास्ता बनाना शुरू कर दिया. 1500 फीट तक सुगम रास्ता पूरी तरह से बन गया है. शेष जो बचे हैं, उसमें कार्य जारी है. उससे पहले 1500 फीट में जो सुगम रास्ता बना है, उसे पत्थर और सीमेंट से जोड़कर प्लास्टर कर रहे हैं. किसी से एक रूपए इसमें नहीं लेते हैं. अपनी पूरी कमाई इसमें लगा देते हैं. हथियार बोर के रास्ते वाणावर पहाड़ तक अब सुगम रास्ता एक तरह से पूरी तरह से तैयार हो गया है. हथियार बोर गया के बेलागंज में पड़ता है, लेकिन वाणावर मंदिर और पातालगंगा जहानाबाद में पड़ता है. अभी सुगम मार्ग को प्लास्टर करने में और चौड़ीकरण करने में जुटे हुए हैं. अपनी खेती से जो कमाई होती है, वह सारा पैसा इसमें लगा देते हैं. बाबा दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया था. हमने पहाड़ काटकर न सिर्फ सुगम रास्ता बनाया , बल्कि पांच पहाड़ों को भी जोड़ दिया है. बड़ी मुश्किल से ढूंढ ढूंढ कर रास्ता बनाया. आज 80 वर्ष की उम्र में भी इस काम में जुटे हुए हैं. अब डीएम भी बोलते हैं, बोर्ड लगाते हैं कि हथियार बोर की तरफ से वाणावर पहाड़ के लिए जाने में सुगम रास्ता बन गया है.

55 साल की उम्र से शुरू किया था. आज 25 साल हो गए. 80 वर्ष की उम्र में भी हमारा जो जुनून है, वह जारी है. वाणावर पहाड़ की चोटी तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह से सुगम मार्ग लगभग बन गया है. अभी सीमेंट से प्लास्टर कर पूरी तरह से सुगम बनाने का काम कर रहे हैं. पिछले 25 सालों से कठिन परिश्रम के साथ इस कार्य को कर रहे हैं. एक बार इस कार्य के दौरान पहाङ पर गिरकर बेहोश हो गए थे. किसी तरह से जान बची, लेकिन एक बार जो जुनून हुआ, वह 80 वर्ष की उम्र में भी कम नहीं हुआ है, बल्कि और बढ़ गया है. यदि सरकार या प्रशासन कुछ देना चाहती है, तो इस पहाड़ का जो सुगम रास्ता बना है, उसे श्याम सुंदर चौहान मार्ग कर दे. यही मेरे पूरे मेहनत की कमाई होगी.

गया से मनोज कुमार की रिपोर्ट 

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