बिहार और उत्तर प्रदेश में सतुआनी विशेष धार्मिक आस्था का पर्व है। सतुआनी अर्थात मेष संक्रांति वैसे तो एक खगोलीय घटना है, लेकिन भारतीय समाज में इसका विशेष स्थान भी है। भारत के कुछ भागों में यह नये वर्ष की शुरुआत है जैसे- बंगाली लोगों के लिए यह पोईला बैशाख (पहला बैशाख) तो पंजाबी समाज के लिए एक बड़ा बैशाखी पर्व है, जो नये साल और फसलों से जुड़ा पर्व माना जाता है।
बिहार के मिथिला में भी इसे नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन जल की पूजा की जाती है और शीतला माता से शीतलता बनाए रखने की कामना की जाती है। ये दो दिवसीय पर्व होता है। जिसके पहले दिन 14 अप्रैल को सतुआन तो दूसरे दिन 15 अप्रैल को धुरलेख होता है। जिस तरह से छठ सूर्य देव की उपासना का पर्व होता है ठीक वैसे ही जुड़ शीतल जल की पूजा का पर्व होता है।
मिथिला में सत्तू और बेसन की नयी पैदावार इसी समय आती है। गर्मी के मौसम में लोग सत्तू और बेसन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इससे बने व्यंजन जल्दी खराब नहीं होते। इसलिए जुड़े शीतल पर्व के पहले दिन सतुआन में सत्तू की कई चीजें बनाई जाती हैं।
सतुआन पूजा विधि
सतुआनी के पर्व से ठीक एक दिन पहले मिट्टी के घड़े में जल को ढक्कर रखा जाता है। फिर इस पर्व की सुबह पूरे घर में उसी जल से पवित्र छिड़काव करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बासी जल के छींटों से पूरा घर शुद्ध हो जाता है। इसके अलावा इस दिन बासी खाना खाने की भी परंपरा है। कहते हैं कि जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की किरणों से अमृत बरसता है, जो आरोग्यवर्धक होता है।
इस दिन सत्तू, कच्चे आम, मूली और गुड़ का सेवन किया जाता है। इसलिए इसका नाम सतुआन पड़ा। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि को हराने के बाद सत्तू का भोजन किया था। इसलिए इस दिन सत्तू का सेवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मेष संक्रांति पर नदी स्नान, पूजा-पाठ, सूर्य को अर्घ्य, दान-पुण्य करने की परंपरा है।
क्या है मेष संक्रांति?
जब सूर्य मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं इस खगोलीय घटना को मेष संक्रांति कहा जाता है। यह न केवल ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मेष संक्रांति को हिंदू सौर नववर्ष भी कहा जाता है । हिंदू कैलेंडर में चंद्र नववर्ष भी होता है, जो धार्मिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। असमिया , ओडिया , पंजाबी , मलयालम , तमिल और बंगाली कैलेंडर में सौर चक्र वर्ष महत्वपूर्ण है।
मेष संक्रांति भारतीय कैलेंडर में बारह संक्रांति में से एक है। यह अवधारणा भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में भी पाई जाती है, जिसमें यह सूर्य के मेष राशि में संक्रमण के दिन को संदर्भित करता है । मेष संक्रांति आमतौर पर 13 अप्रैल को पड़ती है, कभी-कभी 14 अप्रैल को। यह दिन प्रमुख हिंदू, सिख और बौद्ध त्योहारों का आधार है, जिनमें से वैसाखी सबसे प्रसिद्ध हैं।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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