झामुमो के 13वें महाधिवेशन में बहुत कुछ बदल गया है। 38 वर्षों से झामुमो के अध्यक्ष के पद को सुशोभित करने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन आब पार्टी के संस्थापक संरक्षक की भूमिका में आ गये हैं, वही 38 वर्षों बाद पार्टी को हेमंत सोरेन के रूप में नया केन्द्रीय अध्यक्ष मिल गया है। मंगलवार को झामुमो के अधिवेशन का दूसरा और अंतिम दिन था। अध्यक्ष का पद सम्भालने के बाद हेमंत सोरेन ने अपना पहला सम्बोधन भी दिया। उनके इस सम्बोधन में उनका तेवर भी दिखा, विशेषकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वय संघ को लेकर। अपन पहले संबोधन में ही उन्होंने भाजपा पर जमकर प्रहार किये। उन्होंने कहा कि झारखंड में आरएसएस का एजेंडा नहीं चलेगा। झारखंड में लागू नहीं होगा वक्फ बोर्ड संशोधन बिल। उन्होंने कहा कि लंबी यात्रा के बाद वे यहां तक पहुंचे हैं। अभी और लंबी यात्रा तय करनी है। झामुमो फिर से लंबी यात्रा के लिए आगे बढ़ेगा।
शिबू सोरेन के झारखंड और पार्टी के योगदान की सराहना
हेमंत सोरेन ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के झारखंड और झामुमो को किये गये योगदान न सिर्फ याद किया, बल्कि उनकी जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन कभी परिचय के मोहताज नहीं थे। शिबू सोरेन को इस राज्य की जनता ने गुरुजी बनाया है। उस मान-सम्मान का कर्ज इन्होंने वापस भी किया। इस राज्य की जनता के लिए इन्होंने अपनी जवानी, बुढ़ापा सब कुर्बान कर दिया। हर वक्त इनके साथ संघर्ष रहा। सीमित संसाधन के साथ राज्य की जनता के हक की लड़ाई लड़ी। सामंती विचारधारा के लोगों के साथ लड़ाई लड़ना, कोई साधारण बात नहीं है। आज के समय में बेहद कम ही ऐसे लोग मिलते हैं, जिनके मन में राज्य के प्रति इतना प्रेम हो। आज सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरा देश इन्हें शिबू सोरेन के नाम से जानता है। हेमंत सोरेन ने कहा कि आज मंच पर कई लोग हैं। इसके अलावा कई अन्य लोग भी हैं जिन्होंने शिबू सोरेन के कदम से कदम मिलाकर चलने का काम किया।
सोने की चिड़िया का ‘ये लोग’ करते रहे दोहन
हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य अलग होने के बाद ये सोने की चिड़िया था, लेकिन अब हालत कुछ और ही है. राज्य में लोग आते रहे और इसका दोहन करते गए। ये बहुत विचित्र स्थिति है कि जो राज्य पूरे देश का पेट भरता हो, उस राज्य में लोग भूख से मरें. यहां किसानों ने आत्महत्या भी की। जब ये स्थिति आ जाए तो काफी सोचने वाली बात है। अगर किसान आत्महत्या करेंगे तो हम खाएंगे क्या? लेकिन आज किसान बेहाल हैं। किसान आंदोलन को देखा और सुना। ऐसा संघर्ष कभी नहीं देखा होगा। आखिरकार केंद्र सरकार को झुकना पड़ा। हक-अधिकार की लड़ाई पूंजीपति नहीं बल्कि गरीब लोग लड़ते हैं। सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी जात-पात और ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म नहीं हुआ है।
राज्य गठन के बाद गलत हाथों में चला गया शासन
हेमंत ने कहा कि झामुमो के बलिदान के बाद यह राज्य 15 नवंबर 2000 को राज्य बना। मगर राज्य गठन के बाद शासन गलत हाथों में चला गया। जो झारखंड को लुटने-खसोटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कैसे इस राज्य का विकास होगा, इसके लिए कोई सोच-विचार नहीं किया गया. इसके कारण यह राज्य पिछड़ापन के कंलक से निकल नहीं पाया।
बहुमत के बाद भी सत्ता से बेदखल करने की मुहिम चली
2019 में डबल इंजन की सरकार को उखाड फेका।बहुमत आने के बाद भी इस सरकार को सत्ता से बेदखल करने का प्रयास किया गया. वास्वत में ये सांमती लोग आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों को देखना ही नहीं चाहते हैं। सत्ता को पाने के लिए हर संभव प्रयास किया। मगर पुन : 2025 में राज्य की जनता ने हमें साथ दिया।
राजनीति को राजनीतिक स्वार्थ और निहित स्वार्थ साधने का हथियार बना लिया। मगर हम झुके नहीं, न ही टूटे। एक सांसद और एक विधायक से लेकर आज यह पार्टी झारखंड की मजबूत पार्टी के रूप में बनकर उभरी है। इस पार्टी ने यह दिखाया कि जो लोग आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यकों को कमजोर समझते हैं। वे भूल में हैं। यही वजह है कि देश और दुनिया के सबसे ताकतवार जमात को हरा कर दोबारा सरकार बनाया।