क्या घटने लगी है JMM की ब्रान्ड वैल्यू? हेमंत सोरेन के जेल जाने का दिख रहा असर!

JMM's brand value has started decreasing? The effect of Hemant Soren going to jail is visible!

झारखंड की राजनीति के साथ इंडी गठबंधन की जब भी बात होती है तो उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को बड़े भाई के रूप में देखा जाता है। लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और सीट शेयरिंग की बात चल रही है। लेकिन कांग्रेस जिस तरह से सीटों की मांग कर रही है, उससे यही लगता है कि बड़े भाई की भूमिका में वहीं रहना चाहती है। जबकि जनमत के प्रतिशत के हिसाब से सीटों पर ज्यादा हक झामुमो का ही बनता है। लेकिन खबरें आ रही हैं कि झामुमो से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। हालांकि झारखंड में अभी सीट शेयरिंग की बात फाइनल नहीं हुई है। लेकिन यहां बात लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग की नहीं है, बात उससे भी बड़ी है।

इस साल के जनवरी महीने का अंत होते-होते झारखंड की राजनीति से हेमंत सोरेन की पारी का अंत हो गया। जमीन घोटाला मामले में ईडी के फेर में पड़कर जेल में हैं। हेमंत सोरेन के जेल में जाने के बाद चम्पाई सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया है। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी राजनीतिक मोर्चे पर तैनात हो गयी हैं। उनकी राजनीतिक दशा और दिशा क्या होगी, यह भविष्य बतायेगा। लेकिन हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो पहली वाली पार्टी है, यह कहना जल्दबाजी होगी।

आप भले ही यह सोच रहे होंगे कि झामुमो तो अच्छी-खासी, ठीक-ठीक चल रही है। चम्पाई सोरेन हेमंत सोरेन के उत्तराधिकारी के रूप में ठीक से राजकाज चला रहे हैं। कल्पना सोरेन झामुमो के भविष्य के रूप में उभर रही हैं। फिर भी एक कमी है, जिसे महसूस करने की जरूरत है। यह कमी है झमुमो का ब्रान्ड वैल्यू।

यह तो पता है कि इस समय चुनावी सीजन चल रहा है। अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर नेता इधर-उधर ‘भाग’ रहे हैं। पलायन तो झामुमो से भी हुआ है। घर की बहू सीता सोरेन के रूप में झामुमो में बड़ी टूट हुई है। पलायन के इस दौर में दूसरी पार्टियों से झामुमो भी तो नेताओं की आमद होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, मगर क्यो?  हाल में भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के कुछ कार्यकर्ता अवश्य झामुमो में शामिल हुए, लेकिन कोई बड़ा चेहरा दूसरी पार्टी से झामुमो की ओर नहीं आया है। चम्पाई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद कैबिनेट विस्तार से पहले ही झामुमो को तब झटका लग गया था जब पाकुड़ से पार्टी के नेता देवीधन टुडू भाजपा में शामिल हो गये थे। चम्पाई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोबिन हेम्ब्रम के नेतृत्व में चार झामुमो नेताओं ने एक अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया था, हालांकि बाद में यह मामला शांत हो गया। लेकिन यह मामला अस्थायी रूप से ही शांत है। हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री थे तब भी झामुमो को झटका लगा था। पार्टी के केन्द्रीय सचिव धीरज यादव आजसू के खेमे में चले गये थे।

चम्पाई सोरेन के मुख्यमंत्री बनने और कैबिनेट विस्तार के समय बैजनाथ राम को 12वां मंत्री घोषित किया गया था। नाम घोषित होने के बाद भी उन्हें शपथ नहीं दिलायी गयी थी। इससे बैजनाथ राम खासे नाराज हुए थे और पार्टी से अलग राह चलने तक की बात कह दी थी। इसके बाद चम्पाई सोरेन को अलग-अलग मंचों पर इसको लेकर सफाई देनी पड़ी थी। अब तो शिबू परिवार की बड़ी बहू ने पार्टी छोड़कर झामुमो को ही सकते में ही छोड़ दिया है। स्थिति यह है कि पार्टी उनके खिलाफ खुलकर प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रही है। सिवाय यह कहने के कि उनके जाने से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कुल मिलाकर हेमंत सोरेन के जेल जाने का असर झामुमो पर तो दिखा है। हेमंत जब तक सक्रिय राजनीति में थे इन्हें कोई भी निर्णय लेने में किसी की मदद की आवश्यकता नहीं होती थी, वह बड़ा से बड़ा निर्णय खुद लेने में सक्षम थे। लेकिन कोई बड़ा निर्णय लेने में आज यह निर्भरता खत्म होती दिख रही है। यही कारण है कि इसका असर पार्टी पर दिखने लगा है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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