Elephant Aadhar Card in India: अब हाथियों का भी बनेगा Aadhar Card, लगातार हो रहे हमलों के बाद से प्रशासन Alert !

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Elephant Attacks in Kerala: केरल में हाल के दिनों में हाथियों और जानवरों के हमलों ने बड़ी चिंता पैदा की है। हाथियों के हमलों में आम लोगों की मौत के बाद राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से कानून बदलने की अपील की है। घट रहे जंगल और कम होते चारे बन रही है जानवरों और इंसानों के बीच लड़ाई का कारण।

Elephant Aadhar Card in India: भारत में आधार कार्ड बनने की शुरुआत भारत सरकार ने साल 2010 की थी। आज यह हमारी जिंदगी और पहचान का हिस्सा बन गया है। बैंकिंग से लेकर मतदान तक हर जगह इस्तेमाल होता है। लेकिन अब, केंद्र सरकार हाथियों का adhar card बनवाने की तैयारी कर रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना पर काम करना शुरू भी कर दिया है।

3 राज्यों में सबसे ज्यादा हांथी पाया जाता है.
1. Assam (5719)
2. Karnataka (6049)
3. Kerala (3054)

आखिर क्या है जानवरों के गुस्से का कारण?

केरल का लगभग एक तिहाई हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है। वायनाड और राज्य के उत्तरी क्षेत्रों में मनुष्यों और जानवरों में संघर्ष एक गंभीर समस्या है। यह समस्या हाल में शुरू नहीं हुई है. खेती के तरीकों में बदलाव और पशु पालन जैसी व्यावसायिक गतिविधियों ने इसे और बढ़ा दिया है.

अब सवाल यह उठता है :

1.हाथियों का आधार कार्ड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
2.अलग-अलग हाथियों की पहचान कैसे की जाएगी?
3.इससे हाथियों को क्या फायदा होगा?

आइए जानते है इन सवालों का जवाब:

हाथियों का आधार कार्ड क्यों बन रहा?

पालतू हाथियों के साथ हिंसा और खराब बर्ताव की समस्या काफी पुरानी है। इससे कई हाथी समय से पहले ही दम तोड़ देते हैं। साथ ही, इंसानों और हाथियों का संघर्ष भी अक्सर जानलेवा हो जाता है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि भारत में हर साल इंसान और हाथी के टकराव में लगभग 100 हाथी और 500 इंसान अपनी जान गंवा चुके हैं। इसपर गंभीर सवाल उठने के बाद अब सरकार ने हाथियों के बचाव के लिए कई स्तर पर पहल की है।

अलग-अलग हाथियों की पहचान कैसे की जाएगी?

* पालतू हाथियों को डीएनए प्रोफाइलिंग के जरिए दिए जायेगा विशेष नंबर.

* इंसानों के आधार कार्ड की तरह ही इन नंबरों से हाथियों की होगी पहचान।

* देशभर में करीब 3000 सरकारी पालतू हाथी और निजी स्वामित्व वाले हाथियों में माइक्रोचिप लगाया जा रहा

* देश में पालतू हाथियों के अंगों के अवैध व्यापार पर इससे लगेगी रोक.

* एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए इन पालतू हाथियों के लिए पासपोर्ट का काम करेगी यह चिप.

इससे हाथियों को क्या फायदा होगा?

हाथियों पहचानना आसान हो जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि इस कदम से पालतू और जंगली हाथियों के बीच पहचान हो सकेगी। साथ ही यह भी पहचानना आसान हो जाएगा कि कौन सा हाथी किसका है।अभी पालतू हाथियों को पहचानना मुश्किल है। क्योंकि यह जैसे-जैसे बढ़ते है वैसे इनका आकार भी बदलता जाता है। साथ ही तस्करी होने वाले हाथियों के अंग को पकड़ने के बाद अभी यह पहचान भी नहीं हो पाती है कि यह अंग किसी हाथी के है।

घटता जंगल, चिंता का कारण

Infrastructural development के कारण हाथियों के आवास सिकुड़ गए हैं। इसके अलावा जंगल में अतिक्रमण और उसके ऊपर से उच्च वोल्टेज बिजली, रेलवे लाइनों और जंगल के जमीन का उपयोग, हाथियों के हमलों के खतरे को बढ़ा दिया है। नीलगिरी और बबूल जैसी विदेशी प्रजातियों के आवास पर प्रतिकूल असर डालता है।

Arundhati हथनी को मिला देश में पहला पहचान

केंद्र सरकार की तरफ से देश के कई राज्यों में इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. इस मामले में उत्तराखंड की हथिनी अरुंधति को कॉर्बेट नेशनल पार्क में सबसे पहले माइक्रो चिप लगाई गई थी. इस बात को इस रूप में कह सकते हैं कि देश में अरुंधति पहली हथिनी से पहले पहचान मिली थी.

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