झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग और बढ़ते धर्मांतरण के विरोध को लेकर शुक्रवार को आदिवासी समाज ने सड़कों पर एक बड़ा संदेश दिया। राजभवन के सामने आयोजित एक दिवसीय धरना प्रदर्शन के दौरान केंद्रीय सरना समिति की उपाध्यक्ष और चर्चित आदिवासी नेत्री निशा भगत ने अपने बाल मुंडवाकर तीखा विरोध दर्ज कराया। इस ऐतिहासिक विरोध कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने की।
धरना स्थल पर बाल मुंडन के बाद मीडिया से बात करते हुए निशा भगत ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि झारखंड में धर्मांतरण तेजी से बढ़ रहा है और सरकार इसे रोकने में पूरी तरह नाकाम है। उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी बेटियों का अपमान हो रहा है, चंगाई सभाओं के नाम पर बहला-फुसलाकर धर्मांतरण कराया जाता है और लोगों को पैसे का लालच भी दिया जाता है। निशा भगत ने कहा कि मिशनरी संस्थाएं वर्षों से हावी रही हैं और सरकार सबकुछ जानकर भी चुप्पी साधे हुए है।
निशा भगत ने आरोप लगाया कि राज्य में 28 आदिवासी आरक्षित सीटों के बावजूद 10 धर्मांतरित विधायकों के दबाव में सरकार संचालित हो रही है। उन्होंने कहा, “हेमंत सोरेन की सरकार इन्हीं 10 धर्मांतरित विधायकों के सहारे चल रही है। आदिवासी अस्मिता को बचाने के लिए मैंने यह बलिदान दिया है।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार सरना धर्म कोड लागू नहीं करती है, तो आने वाले दिनों में बड़ा उलगुलान होगा और केंद्रीय सरना समिति इससे भी बड़ा कदम उठाने को बाध्य होगी।
केंद्रीय सरना समिति की नेत्री एंजिल लकड़ा ने कहा कि किसी महिला के लिए बाल उसका सबसे बड़ा श्रृंगार होता है, लेकिन धर्मांतरण के खिलाफ संघर्ष में निशा भगत ने इसे त्याग कर मिसाल पेश की है। समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की और अन्य पदाधिकारियों ने कहा कि यह संदेश पूरे झारखंड के आदिवासी समाज तक जाएगा और यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और अधिक प्रचंड रूप लेगा।