झारखंड और बिहार में वैसाखी के सहारे कांग्रेस? साथ चलते रहने के अलावा दूसरा उपाय भी नहीं!

Congress with the help of Vaisakhi in Jharkhand and Bihar? Compulsion to keep moving together!

यह सही है कि झारखंड और बिहार में काग्रेस अपने गठबंधन के साथ वहां की सभी सीटों पर जीत का दावा कर रही है। कांग्रेस झारखंड की सभी 14 सीटें और बिहार की सभी 40 सीटें जीतने का दम भर रही है, लेकिन वह ऐसा खुद के बूते नहीं कर सकती, यह वह भी जानती है। झारखंड में उसकी ताकत झामुमो है तो बिहार में उसकी ताकत राजद है। अगर इन दोनों पार्टियों को उससे अलग कर दिया जाये तो उसकी ताकत दोनों राज्यों में शून्य हो जायेगी, लेकिन शायद कांग्रेस ऐसा नहीं मानती।

कांग्रेस भले इस गलतफहमी में है कि बिहार और झारखंड में उसने अपनी ताकत बढ़ा ली है। तो उसे अपने पिछले दो चुनावों के प्रदर्शनों पर भी थोड़ा गौर कर लेना चाहिए। लोकसभा चुनाव 2019 में चाहे झारखंड हो या बिहार उसे सीटें कितनी मिलीं एक-एक। यानी झारखंड में भी एक सीट और बिहार में भी एक सीट। यह सफलता भी उसे तब मिली जब इसके साथ गठबंधन की ताकत भी थी। इसे और बेहतर तरीके से समझें तो बिहार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कुल वोट शेयरिंग 7.7 प्रतिशत ही थी। उससे काफी अच्छी वोट शेयरिंग राजद की 15.36 प्रतिशत थी। बात करें झारखंड की तो 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 15.8 प्रतिशत वोट मिले थे। जाहिर है इस वोट शेयरिंग में झामुमो और राजद की भी वोट शेयरिंग शामिल है। एक चुनाव और पीछे चलें- 2014 में कांग्रेस की स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी। 2014 में कांग्रेस को झारखंड में एक भी सीट नहीं मिली। वोट भी 13 प्रतिशत ही आये थे। वहीं बिहार में 2014 में कांग्रेस 2 सीटें ही जीत पायी थी वह भी 8.6 प्रतिशत वोट के साथ। यानी दोनों राज्यों में 2014 में भी कुल 2 सीटें और 2019 में भी दोनों राज्यों में 2 सीटें। अब इन्तजार है 2024 के परिणाम का कि इस चुनाव में उसका प्रदर्शन कैसा होता है। बिहार में कांग्रेस की स्थिति बेहतर हो जायेगी, इसकी उम्मीद तो कम है, क्योंकि यहां तो खुद राजद ही नहीं चाहता कि कांग्रेस की स्थिति सुधरे। भले ही तेजस्वी और राहुल आपस में गलबहियां करते दिखें, लेकिन राजद नहीं चाहता कि कांग्रेस का बिहार में रुतबा बढ़े। हां, झारखंड में झामुमो कांग्रेस को साथ लेकर जरूर चलना चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों पर और कांग्रेस का बड़ा भाई बनकर।

कुल मिलाकर कांग्रेस की ऐसी स्थिति दूसरे राज्यों में भी है। लेकिन झारखंड और बिहार की स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस चाहकर भी अपने गठबंधन को छोड़ नहीं सकती। झारखंड में झामुमो के हाथों कई बार अपमानित होने के बाद भी गठबंधन में रहना उसकी विवशता है। बिहार में तो कांग्रेस की हालत तो और भी पतली है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग में उसकी जितनी फजीहत यहां हुई, उतनी किसी दूसरे राज्य में नहीं हुई। इतना ही नहीं राजद के हाथों वह कितनी बेबस है, इसे पप्पू यादव के साथ जो हुआ उससे समझा जा सकता है। पप्पू यादव ने बड़ी उम्मीदों के साथ कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कराया कि पूर्णिया से उन्हें कांग्रेस का टिकट मिल जायेगा। इस मामले में पप्पू यादव तो अपमानित हुए ही, कांग्रेस को भी खून का घूंट पीकर रह जाना पड़ा। अब सोचिये, पप्पू यादव पूर्णिया की जंग जीत जाते हैं तो फिर कांग्रेस ही नहीं राजद का भी क्या हाल होगा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस चाहे झारखंड हो या बिहार अपनी नहीं दूसरों की वैसाखियों पर चल रही है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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