INDI Alliance Seat Sharing: राहुल गांधी को पीएम बनाने के लिए कांग्रेस बेचैन, दूसरे पीएम बनना चाह रहे तो गलत क्या?

Congress is desperate to make Rahul the PM, what is wrong if someone else wants to become PM?

INDI Alliance Seat Sharing: यह बात तो अब किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस इंडी गठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें क्यों मांग रही है। ज्यादा सीटें लेकर सहयोगियों के सहयोग से ज्यादा सीटें जीतकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ करने की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है। यह भले ही लग रहा हो कि गठबंधन की दूसरी पार्टियां कांग्रेस को कम सीटें देकर उसकी मंशा पर रोड़े अटका रही हैं, लेकिन सच तो यह है कि गठबंधन की कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसके बड़े नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना पाल कर नहीं रखे हुए हैं।

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी तो तब से पीएम बनने का सपना पाले हुए हैं, जब से राहुल गांधी की राजनीतिक में एंट्री भी नहीं हुई थी। इसलिए वह कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में फटकने भी नहीं देना चाहती हैं। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भले ही पीएम बनने की अपनी कोई मंशा प्रत्यक्ष रूप से जाहिर नहीं की है, लेकिन उनकी पार्टी के नेता उन्हें पहले ही पीएम पद का सबसे योग्य उम्मीदवार करार दे चुके हैं। ऐसा सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए उनकी पार्टी के नेता पहले ही प्रचारित कर चुके हैं। याद होगा सपा सुप्रीम रहे अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह प्रधानमंत्री बनने का सपना लिए दुनिया से विदा हो गये। क्या दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ऐसा सपना नहीं संजोये होंगे? महाराष्ट्र के शरद यादव और उद्धव ठाकरे की भी बड़ी इच्छा होगी काश, वे भी किसी तरह एक बार पीएम बन जायें। इसमें कहीं कोई दो राय नहीं है कि इन तमाम नेताओं की राजनीतिक समझदारी कांग्रेस के राहुल गांधी से कहीं ज्यादा बेहतर है। फिर भी अगर मौका आयेगा तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य इन्हें मिलने वाला नहीं।

पीएम पद के हैं एक और उम्मीदवार नीतीश कुमार

इंडी गठबंधन की बात हो और प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की बात न हो तो बात अधूरी रह जायेगी। इसमें किसी को शंका नहीं होनी चाहिए कि इंडी गठबंधन आज अस्तित्व में है तो वह मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बदौलत है। हर नेता के दरवाजे पर जा-जाकर इन्होंने गठबंधन के लिए बैठक करने के लिए उन्हें मनाया। हां-ना करते-करते पटना में पहली बैठक आयोजित भी हो गयी और इंडी गठबंधन की रूपरेखा भी तैयार हो गयी। उस बैठक के बाद से अब तक चार बैठकें आयोजित हो चुकी हैं। कुछ बातें आगे बढ़ीं तो पार्टियों के निजी स्वार्थों के कारण कुछ बातों पर सहमति नहीं बन पा रही है। जिनमें एक है सीटों का बंटवारा (प्रधानमंत्री बनने की नौबत आयेगी तब पता नहीं क्या होगा)। सीटों के बंटवारे में जो भी विवाद है वह कांग्रेस की वजह से है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब ये ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस का वजूद न के बराबर है, फिर भी उसे बराबरी की सीटें चाहिए। इसी कारण सहयोगी पार्टियों से उसकी ठनी हुई है।

दूसरे राज्यों की तरह से बिहार ने भी कांग्रेस को अपनी मंशा बता दी है। नीतीश की पार्टी जदयू और लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने पहले से ही अपने लिए 16-16 सीटें तय कर रखी हैं। बची 8 सीटें जिसमें कांग्रेस और लेफ्ट को आपस में बांटने का ऑप्शन जदयू और राजद ने दिया है। अब तो जदयू ने साफ कर दिया है कि उसकी 16 सीटों पर दावेदारी पक्की है और उससे वह कोई समझौता नहीं करने वाली है। आलम तो यह है कि जदयू के एक विधायक गोपाल मंडल ने तो यहां तक कह दिया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश भर में यात्रा की और गठबंधन बनाया और उन्हें अगला प्रधानमंत्री होना चाहिए। नीतीश कुमार के अलावा कोई भी प्रधानमंत्री बनने में सक्षम नहीं है। खड़गे? मैं उनका नाम भी नहीं जानता। कोई भी उन्हें नहीं जानता; हर कोई जानता है कि नीतीश कुमार कौन हैं। इससे पहले जदयू नेता केसी त्यागी भी कह चुके हैं कि जदयू और राजद बिहार में भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में हैं, उन्होंने 16 सीटें जीती हैं और वहां समझौता नहीं करेंगे। बता दें कि जदयू के पास फिलहाल बिहार में 16 सीटें हैं, 17 पर भाजपा का कब्जा है जबकि राजद के पास राज्य में एक भी लोकसभा सीट नहीं है।

आखिर कांग्रेस को ज्यादा सीटें क्यों नहीं देना चाहतीं गठबंधन की पार्टियां?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन राज्यों में कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद नहीं हैं, वहां का गणित यही है कि वहां सत्ता में काबिज पार्टियां मजबूत स्थिति में हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी मजबूत स्थिति में है, इसलिए वह कांग्रेस को सीटें नहीं देना चाह रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की स्थिति कांग्रेस की तुलना में ज्यादा मजबूत है। बिहार में जदयू-राजद भाजपा के टक्कर देने में खुद को सक्षम मान रहे हैं। दिल्ली और पंजाब में आप का परचम लहरा रहा है। बात झारखंड की करें तो बिना झामुमो के सहयोग के कांग्रेस के लिए सीटें निकाल पाना टेढ़ी खीर है। इसका मतलब यही हुआ कि कांग्रेस जबरदस्ती सीटों की मांग कर रही है। एक बात बड़ी दिलचस्प है कि कांग्रेस सीट शेयरिंग के लिए परेशान है और राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर निकलने वाले हैं। यानी महत्वपूर्ण मौके पर राहुल गांधी का फिर एक और ‘पलायन’।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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