पाला बदलते ही क्यों बदल जाते हैं नेताओं के सुर! सीता और जेपी ने भी तो यही किया!

The tone of the leaders changes as soon as the party changes! Sita-JP also did the same!

यह बड़ा सवाल है कि जिस पार्टी के साथ रहे। उस पार्टी के साथ विरोधियों के लिए रणनीति बनायी। साथ खाया-पिया। लेकिन परिस्थिति वश या राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण नेता पाला बदलते वक्त ये नेता बदल क्यों जाते हैं? पार्टी बदलना कोई नयी बात नहीं है, यह दस्तूर तो वर्षों से चल रहा है। पार्टी बदलने पर एक और बात भी नयी नहीं है, वह है पाला बदलते ही नेताओं का सुर बदल जाना। जिस पार्टी से आये, उस पर तीखे कटाक्ष यहां तक कि ‘जहर’ उगलने में भी परहेज नहीं करना भी एक दस्तूर बन गया है। भाजपा में रह चुके उत्तर प्रदेश के बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में आये थे। सपा में आने के बाद वह क्या-क्या करते रहे हैं, और कैसे-कैसे बयान देते रहे हैं, यह किसी से छुपा नहीं है।

ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। झारखंड के दो नेताओं ने दो दिनों में अपनी पार्टी छोड़ी और दूसरी पार्टी को अपनाया। लेकिन जैसे ही उन्होंने पार्टी बदली वैसे ही उनकी पुरानी पार्टी उन्हें चुभने लगी, यह उनके बयानों से साफ जाहिर होता है।

सीता सोरेन की वर्षों की पीड़ा उभरी

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की बड़ी बहू को बारे में अक्सर सुनने में आता था कि परिवार की होकर भी परिवार से अलग-थलग पड़ गयी थीं। यह बात झामुमो से भाजपा में आते ही उनकी जुबां पर आ ही गया। दिल्ली में भाजपा कार्यालय में पार्टी की सदस्यता लेने के बाद अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा भी कि उनके पति दुर्गा सोरेन (झामुमो प्रमुख के बेटे और झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के बड़े भाई) की मृत्यु के बाद से उन्हें पार्टी और परिवार के सदस्यों ने अलग-थलग कर दिया है। मेरे दिवंगत पति, दुर्गा सोरेन, जो झारखंड आंदोलन के एक अग्रणी योद्धा और एक महान क्रांतिकारी थे, के निधन के बाद से, मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। हमें पार्टी और परिवार के सदस्यों ने अलग-थलग कर दिया है, जो मेरे लिए बेहद दुःखद है। मुझे उम्मीद थी कि समय के साथ स्थिति में सुधार होगा, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने भले ही कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विचारधारा से प्रेरित होकर भाजपा में आयी हैं या भाजपा में आने का मकसद झारखंड की सेवा करना है। क्योंकि झारखंड आज बहुत ही पिछड़ा राज्य है। फिर भी यह तो कहा ही जा सकता है कि शायद ‘पारिवारिक उपेक्षा’ ने उन्हें पारिवारिक पार्टी छोड़ने को विवश किया।

जय प्रकाश भाई पटेल की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी भाजपा

बुधवार को भाजपा छोड़ कर मांडू विधायक जय प्रकाश भाई पटेल कांग्रेस के खेमे में आ गये। उन्होंने भी दिल्ली के कांग्रेस कार्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। अब जरा कल तक भाजपा के गुणगान करने वाले जय प्रकाश भाई पटेल की बातें सुनिये जो उन्होंने भाजपा छोड़ने और कांग्रेस से जुड़ने के बाद कहीं। जय प्रकाश भाई पटेल ने कहा- मैं किसी पर आरोप नहीं लगा रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में न सिर्फ बीजेपी, बल्कि एनडीए गठबंधन के लिए प्रचार किया। हमें लगा कि झारखंड के लोगों के लिए काम कर सकेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मेरे पिता टेक लाल महतो अग्रणी योद्धा थे, हमें लगा कि एनडीए में जाने से उनके विजन को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा माहौल नहीं बना। हम ‘इंडिया’ गठबंधन को झारखंड में मजबूत करेंगे।

यहां यह बताना जरूरी है कि ये दोनों नेता अपनी-अपनी पार्टियों में रहते शायद वह राजनीतिक उड़ान नहीं भर पाते जिसकी ख्वाहिश लेकर उन्होंने पाला बदला है। हो सकता है ये दोनों नेता आगामी लोकसभा चुनावों में अपनी नयी पार्टियों के बैनर तले लोकसभा चुनाव लड़ते हुए नजर आयें!

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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