Dumka: परिवार की बहू सीता सोरेन ने ठोंक दी है ताल! शिबू परिवार से झामुमो प्रत्याशी कौन?

Sita Soren has set the tone! Who is the JMM candidate from Shibu family?

झामुमो कैसे बचायेगा लाज, लगातार घट रहा जनाधार?

लोकसभा 2024 चुनाव में दुमका सीट झारखंड की सबसे हॉट सीट बनने जा रही है। क्योंकि इस बार शिबू परिवार को इस सीट पर शिबू परिवार की ही बहू ने चुनौती दी है। भाजपा से टिकट लेकर झामुमो की बागी विधायक सीता सोरेन दुमका सीट से उतर चुकी हैं। दुमका वह सीट है जिस पर आज तक शिबू परिवार नहीं, खुद शिबू सोरेन का ही वर्चस्व रहा है। 1980 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन कुल आठ बार इस सीट पर अपना दम दिखा चुके हैं। चूंकि दुमका सीट से, चाहे जीत मिली या हार, शिबू सोरेन के अलावा और कोई दूसरा झामुमो प्रत्याशी शिबू परिवार से चुनाव के लिए मैदान में उतरा ही नहीं, इसलिए इस पर ज्यादा कुछ तो कहा नहीं जा सकता है, लेकिन सवाल अब यह शिबू परिवार से भाजपा के लिए चुनाव मैदान में सीता सोरेन तो उतर चुकी हैं, शिबू परिवार से झामुमो से उन्हें कौन टक्कर देगा। अभी तक सिर्फ शिबू सोरेन ही चूंकि मैदान में उतरते रहे हैं, लेकिन इस बार उनका मैदान में उतरना सम्भव नहीं लग रहा। तो सवाल उठता है कि शिबू की जगह झामुमो प्रत्याशी कौन?

शिबू परिवार पर नजर दौड़ायें तो आज खुद शिबू सोरेन लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। उनकी पत्नी और पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन भी बीमारी की वजह से चुनाव में नहीं उतर सकतीं। उसके बाद बच जाते हैं- हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और कल्पना सोरेन। हेमंत सोरेन चुनाव लड़ सकेंगे या नहीं, यह तो अभी कुछ तय नहीं है। यहां परिवार की इच्छा से ज्यादा कानूनी मसले की भी बात है। हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन अगर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उनका दबदबा कितना रहेगा, इसको लेकर झामुमो को भी संदेह होगा। रही बात कल्पना सोरेन की तो वैसे कल्पना सोरेन चुनाव मैदान में तो उतर सकती हैं। लेकिन उनके लिए अभी दुविधा की स्थिति यह होगी कि वह लोकसभा चुनाव लड़ें या फिर अपने पति हेमंत की इच्छा का खयाल करते हुए गांडेय उप चुनाव लड़कर और जीत कर झारखंड की बागडोर सम्भालें। इस स्थिति में यही लगता है कि झामुमो शिबू परिवार से हटकर किसी अन्य कद्दावर नेता को चुनाव मैदान में उतारे। शिबू परिवार से इतर चम्पाई सोरेन को आखिर मुख्यमंत्री बनाया तो जा ही चुका है। क्योंकि अगर विरासत का ही ख्याल झामुमो रखेगा तो इस महत्वपूर्ण सीट को गंवाना भी पड़ सकता है। वैसे अभी यह सीट भाजपा के सुनील सोरेन के कब्जे में है, जिनका टिकट काटकर सीता सोरेन को चुनाव मैदान में उतारा गया है।

शिबू सोरेन भले ही लगातार जीते हों, लेकिन घटा है जनाधार!

शिबू सोरेन दुमका से पहली बार 1980 में लोकसभा चुनाव जीते थे। झामुमो के गठन के बाद पार्टी की पहली जीत थी। मगर 1984 में शिबू कांग्रेस के पृथ्वी चंद किस्कू के हाथों हार गये। 1989 में शिबू सोरेन ने दुमका में एक बार फिर वापसी की और 1991 और 1996 में लगातार तीन बार दुमका की कुर्सी पर कब्जा जमाया। यहां से भाजपा ने दुमका में अपनी पैठ बनानी शुरू की। 1998 और 1999 में बाबूलाल मरांडी ने लगातार दो लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को मात दी। मगर शिबू सोरेन भी मंझे हुए राजनीतिक हैं। इसके बाद तो उन्होंने ऐसा दांव चला कि लगातार 4 बार दुमका से सांसद बन गये। 2002, 2004, 2009 और 2014 में लगातार 4 बार लोकसभा चुनाव जीते। मगर 2014 का चुनाव शिबू सोरेन की आखिरी जीत है। इसके बाद 2019 में वह भाजपा के सुनील सोरेन के हाथों मात खा गये।

अब झामुमो की यह जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा का विषय है कि वह 2019 में मिली हार का बदला ले। साथ ही घर की बागी बहू को यह असहास दिलाये की घर का मुखिया आखिर मुखिया ही होता है।

भाजपा के लिए दुमका चुनाव जितना कितना आसान?

भाजपा ने झामुमो की विधायक सीता सोरेन को पार्टी में शामिल करके चुनाव मैदान में उतारा है। चूंकि यह पारिवारिक पार्टी से बगावत का मामला है तो जाहिर है कि उनके साथ उनके समर्थकों की भी एक बड़ी संख्या होगी, जो भाजपा को जीत का मार्ग साफ करेगी और झामुमो के लिए मुश्किलें पैदा करेगी। मगर यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि भले ही झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन यहां से लगातार जीतते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में उनका जनाधार घटा है।  2004 में हुए लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन नें 54 प्रतिशत वोट लाकर भाजपा प्रत्याशी को हराया था। मगर बाद के लोकसभा चुनावों में झामुमो के वोटों का प्रतिशत घटा है और भाजपा ने यहां पकड़ बनायी है।

2004

2004 को लेकसभा चुनाव में झामुमो के शिबू सोरेन को 54.3% वोट मिले थे। जबकि भाजपा के सोने लाल हेम्ब्रम को 35.9% प्रतिशत वोट। सोने लाल हेम्ब्रम को मिले 224,527 वोटों के मुकाबले शिबू सोरेन ने 339,542 लाकर मुकाबला जीता था।

2009

2009 में शिबू सोरेन अवश्य जीते, लेकिन यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस समय भाजपा के बाबूलाल मरांडी पार्टी छोड़कर अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बना चुके थे। भाजपा और झाविमो ने अलग-अलग लड़कर भी जितने कुल वोट लाये थे, झामुमो के वोट उससे कम ही थे। झामुमो के शिबू ने 208,518 (33.5%) लाये तो भाजपा के सुनील सोरेन को 189,706 (30.5%)  मिले थे। जबकि झाविमो के रमेश हेम्ब्रम के 64,528 (10.4%) वोट बता रहे हैं कि भाजपा के वोट बंटे नहीं होते तो शिबू सोरेन को 2009 में ही हार मिल गयी होती

2014

2009 वाली स्थिति 2014 में भी बनी रही। शिबू सोरेन 335,815 (37.2%) वोट लाकर फिर जीत गये। भाजपा के सुनील सोरेन ने 296,785 (32.9%) वोट लाकर उन्हें एक बार फिर टक्कर दी। झाविमो से इस बार पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी मैदान में उतरे थे जिन्होंने 158,122 (17.5%) वोट लाये।

2019

2019 में तो झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का दुमका का राज ही छिन गया। लगातार दो बार हारने के बाद सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को आखिर मात दे ही दी। इस चुनाव में भाजपा को 484,923 (47.3%) वोट मिले जबकि झामुमो 437,333 (42.6%) वोट लाकर पिछ गया।

अब बारी 2024 की

तो अब झामुमो के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि शिबू सोरेन के चुनाव लड़ने के बाद भी झामुमो के वोटों का प्रतिशत लगातार घटता गया है। वहीं भाजपा अब झाविमो की ताकत लेकर फिर से और ताकतवर हो गयी है। ऐसे में शिबू सोरेन की पार्टी झामुमो बागी सीता सोरेन नाम की समस्या से कैसे निबटे।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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