मोदी सरकार 3.0 ने देश में एक देश एक चुनाव की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। बुधवार को केन्द्रीय कैबिनेट ने One Nation One Election के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में ‘एक देश एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी है। मोदी सरकार आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर बिल लायेगी। एनडीए सरकार ने अपने सहयोगी दलों को इस पर सहमति बनानी शुरू कर दी है। बता दें कि बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ने भी बिल पर अपनी सहमति दे दी है।
One Nation One Election को लेकर पिछले कुछ दिनों से चर्चा चल रही है। अब जाहिर है कि इसको लेकर विपक्षी दलों में खलबलाहट मचेगी। विपक्षी पार्टियां- कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM समेत कई पार्टियों इसका शुरू से विरोध कर रही हैं। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने इस पर पहले से ही अपना मूड बनाये हुए थी और उसी दिशा में कदम भी आगे बढ़ा रही थी। बता दें कि मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व में एक समिति भी बनाकर एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा को साकार करने के लिए बिल तैयार करने का काम सौंपा था। समिति को पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता और तौर-तरीकों पर विचार-विमर्श करने का जिम्मा सौंपा गया था।
एक देश एक चुनाव से देश को क्या होंगे फायदे?
माना जा रहा है कि एक देश एक चुनाव होने से देश के खरबों रुपयों की बचत होगी। अलग-अलग चुनाव होने से देश की बहुमूल्य सम्पत्ति खर्च हो रही थी। साथ ही देश के संसाधनों की भारी बचत होगी। चुनावों को लेकर प्रशासनिक कार्यों में आने वाली रुकावटें घटेंगी। विकास योजनाएं और नीतियां बार-बार ठप नहीं होंगी। इतना ही नहीं, विरोध करने वाली पार्टियों के भी धन और संसाधन की बचत होगी। मतदान के प्रति मतदाताओं में जागरूकता की भी उम्मीद की जा रही है।
एक देश – एक चुनाव की दिक्कतें
ऐसा नहीं है कि एक देश एक चुनाव के सिर्फ फायदे भी हैं। इसके मार्ग में कई दिक्कतें भी हैं। इसके लिए सबसे पहले संविधान में संशोधन करना होगा। हालांकि केन्द्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में इसको लेकर बिल लाने जा रही है। बिल पास हो जाने के बाद संविधान संशोधन स्वतः हो जायेगा। फिर भी कुछ और दिक्कतें भी हैं। एक देश एक चुनाव से क्षेत्रीय मुद्दों के प्रभावित होने का खतरा उत्पन्न हो जायेगा। इतना ही नहीं, क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर भी संकट आ सकता है। राज्यों का राजनीतिक संकट भी इसके मार्ग में एक बड़ी रुकावट है। देखना यह होगा कि केन्द्र सरकार इस रुकावट को कैसे दूर कर पाती है। ‘एक देश एक चुनाव’ चुनाव आयोग के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरेगा।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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