Vasant Navratri: मां ब्रह्मचारिणी कठिन तप में अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होने का देती हैं संदेश

Mother Brahmacharini gives the message of not deviating from one's goal in difficult penance.

द्वितीय ब्रह्मचारिणी

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

वसंत नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जा रही है। मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी का हैं। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेम स्वरूप भी हैं।

मां दुर्गाजी का दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम में वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की आराधना का साधकों के लिए विशेष महत्व है। इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना वे आसानी से कर सकें। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है, लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। अपनी पुत्री की इच्छा जानकर उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की। इन सबके बावजूद देवी ने काम के देवता भगवान कामदेव की मदद मांगी। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में विघ्न उत्पन्न हो गया, इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को जला डाला। इसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहां उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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