भाजपा की केन्द्र सरकार ने दिल्ली के सराय काले खां का नाम बदल दिया है। सराय काले खां का अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जायेगा। लेकिन इसको लेकर राजनीतिक भी शुरू हो गयी है। झारखंड विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सराय काले खां का नाम बदलने का विरोध किया है। हेमंत ने ऐसा किये जाने को आदिवासियों-मूलवासियों का अपमान बताया है। हेमंत सोरेन और झामुमो दोनों का यह कहना है कि भगवान बिरसा को उनके कद के अनुरूप सम्मान नहीं दिया गया है। अगर ऐसा ही था तो देश की नयी संसद सेंट्रल विस्टा का नाम भगवान बिरसा के नाम पर रखा जाये।
वैसे तो भगवान बिरसा के नाम पर झारखंड में आपको कई स्थल और स्मारक, संस्थान आदि मिल जायेंगे। शायद यह पहला प्रयास है जिसमें भगवान बिरसा को झारखंड से बाहर सम्मान देने का प्रयास किया गया है, यह सम्मान दिया जाना अब राजनीति के भंवर जाल में फंस गया है। लेकिन यह फैसला वापस भी लिया जाता है तभी राजनीति तो होगी ही। लेकिन सवाल तो यह भी उठता है कि ‘बिरसा’ ऐसा नाम है जो आदिवासी समाज में रखा जाता है। क्या अगर अगर आदिवासी समाज से बाहर का कोई व्यक्ति भगवान बिरसा का सम्मान देने के लिए अपने बच्चे को ‘बिरसा’ नाम दे दे तो यह कैसे आदिवासी समाज का अपमान है?
सराय काले खान कौन?
काले खान, जिनके नाम दिल्ली के उस इलाके के नाम पर सराय काले खान पड़ा है को बारे में स्पष्ट रूप से कहना मुश्किल है। एक राय के अनुसार, काले खां एक सूफी संत थे, इन्हीं के नाम पर दिल्ली में स्थित इलाके का नाम सराय काले खां रखा गया। यह इलाका दक्षिण-पूर्वी दिल्ली जिले के अंतर्गत आता है। काले खान 14वीं शताब्दी के सूफी संत थे। यह काल शेरशाह सूरी का था। इसके अलावा औरंगजेब के समय में भी एक काले खां हुआ था। वह औरंगजेब का प्रमुख सेनापति था।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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