देव-पितर अदृश्य रूप में आकर संगम में करते हैं स्नान, इसलिए मौनी अमावस्या का है विशेष महत्व

माघ माह की मौनी अमावस्या का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। इस समय प्रयागराज में महाकुम्भ पर मौनी अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। भले ही मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में आज दुःखद हादसा हो गया, लेकिन महाकुम्भ पर पहुंचे करोड़ों श्रद्धालुओं की भी ही इसके महत्व को बताने के लिए काफी है। आज तो मौनी अमावस्या पर 10 करोड़ लोगों के अमृत स्नान करने का अनुमान है, लेकिन एक दिन पहले ही 6 करोड़ लोगों ने यहां आस्था की डुबकी लगाकर अपनी श्रद्धा प्रदर्शित कर चुके हैं।

मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान, दान पुण्य करने के बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा मिलता है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा में डुबकी लगाने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। यह भी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन भगवान विष्णु और पितरों की पूजा अर्चना करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। देवलोक से सभी देवता प्रयागराज आकर अदृश्‍य रूप से संगम में स्‍नान करते हैं। इस दिन पितृगण पितृलोक से संगम में स्‍नान करने आते हैं। इस तरह देवता और पितरों का इस दिन संगम होता है।

‘मौनी’ शब्द का अर्थ वैसे तो मौन रहना है। लेकिन इस शब्द का अर्थ से ज्यादा भाव है। इस दिन मौन रहकर व्रत रखने का शुभ फल माना जाता है। मौन व्रत धारण करने का असल तात्पर्य  मन को संयमित करने, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से दूर रहना है।

अमृत स्नान का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ के अमृत स्नान के समय में गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद ही शुभ रहता है। जो व्यक्ति इस समय गंगा स्नान या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ के दौरान अमृत स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। मौनी अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान और दान का विशेष महत्व होता है।

अगला अमृत स्नान कब है?

महाकुंभ का अंतिम अमृत स्नान बसंत पंचमी पर होगा। इस साल पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट से शुरू हो रही है जो 3 फरवरी को 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार बसंत पंचमी 3 फरवरी को मनायी जाएगी।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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