बिहार के औरंगाबाद के बरपा गांव में चल रहे DAF बरपा प्रीमियर लीग की विजेता बनी बांसबिगहा की टीम

DAF Barpa Premiere league का 16वां संस्करण औरंगाबाद के बरपा में खेला गया…यह क्रिकेट का एक वार्षिक टूर्नामेंट है ..जो रात-दिन के फॉर्मेट में खेला जाता है… इस बार टूर्नामेंट में औरंगाबाद जिले के करीब 12 गांव के 21 टीमें ने इसमें हिस्सा लिया…27-28 मार्च को हुए इस टूर्नामेंट में आखिरकार बांसबिगहा की टीम ने बाजी मार ली…विजेता को ट्रॉफी के साथ 2100 नकद और उप विजेता को ट्रॉफी और 1100 रूपए का नकद पुरस्कार दिया गया।

आस-पास के गांव के लिए ये टूर्नामेंट किसी IPL से कम नहीं है और काफी लोकप्रिय है…क्षेत्र के सम्मानित लोगों ने भी इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और ढाई आखर फाउंडेशन के इस कार्य की सराहना की…ढाई आखर का मानना है कि बच्चों को पढाई के साथ खेलना भी उतना ही जरूरी है …खेल से बच्चों का शारीरिक ही नहीं मानसिक विकास भी होता है…और साथ ही एकजुटता की भावना, नेतृत्व करने की क्षमता का विकास भी होता है…यही नहीं इस तरह के कार्यक्रम युवाओं को नशे या अन्य किसी गलत दिशा में जाने से भी रोकता है…

ढाई आखर फाउंडेशन ने इसकी शुरूआत इस इलाके में तब की थी जब यहां न तो बिजली थी और न ही सड़क…तब गांव के बच्चों को रात में फ्लड लाइट में क्रिकेट खेलना एक सपने की तरह था …और इसी सपने को सच में बदलने और सुदूर गांव के लोगों को फ्लड लाइट में क्रिकेट खेलने का अनुभव देने के लिए इसकी शुरूआत ढाई आखर फाउंडेशन ने 2009 में की थी…रात में खेले जाने के साथ साथ ही यह शॉर्ट पिच पर खेले जाने वाला 6 से 8 ओवर का मैच होता है… इसमें बैट्समैन के अनुशासन और तकनीक की कड़ी परीक्षा होती है, क्योंकि यहां छक्का मारने की अनुमति नहीं है और साथ ही “वन टिप वन हैंड कैच’ आउट होने का भी नियम होता है…

ये नियम शौकिया तौर पर नहीं बनाए गए बल्कि गांवों में छोटे और लगभग खत्म होते प्लेग्राउंड के कारण मजबूरी में ऐसे नि्यम बनाने पड़े…हर साल जब खेत मे फसल की कटाई हो जाती है तो उसे जोत कर, हल चलाकर ढाई आखर फाउंडेशन के वॉलंटियर उसे खेलने लायक मैदान तैयार करते हैं… और फिर टूर्नामेंट के आयोजन के बाद वही ग्रांउंड खेत में तब्दील हो जाता है…और ये स्थिति सिर्फ इस इलाके की ही नहीं बल्कि बिहार के लगभग हर गांव की स्थिति ऐसी हा है…जहां बच्चों के खेलने के मैदान न के बराबर हैं…

ऐसे में सरकार की योजना खेलो इंडिया को अगर और सफल बनाना है तो गांवों में खेल के लिए कमन से कम एक मैदान का होना तो जरूरी है…क्योंकि अगर ग्राउंड होता तभी ढाई आखर फाउंडेशन जैसी संस्थाएं बाकी सुविधाओं को प्रदान कर और सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनकी योजनाओं को लोगों तक पहुंचा पाएंगी और उसका लाभ युवाओं और फिर देश को मिल पाएगा.

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