‘0’ की हैट्रिक बनाकर भी कांग्रेस ने आप को दिल्ली में कराया ‘बाप-बाप’, सेनापति तो गया, गढ़ भी नहीं बचा

कांग्रेस ने दिल्ली में ‘0’ की हैट्रिक बनायी, शायद इससे पार्टी को उतनी तकलीफ नहीं होगी, जितनी खुशी आप और आप के बॉस के हारने की हो रही होगी। छोटे-बड़े सभी राजनीतिज्ञ कह रहे हैं कि आप ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं करके बड़ी भूल की। मगर यह राजनीति है, राजनीति में अपनी जीत से ज्यादा दूसरों की हार भी बड़े मायने रखती है, और शायद दिल्ली में ऐसा ही हुआ।

दिल्ली में आप की हार में सबसे बड़ी हार आम आदमी पार्टी के कर्ता-धर्ता अरविंद केजरीवाल की हुई। उनकी हार के साथ ही यह बात हवा में तैरने लगी कि कांग्रेस और खासकर दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित की भूमिका की वजह से केजरीवाल हारे हैं। याद होगा, 2013 में अरविंद केजरीवाल ने ही शीला दीक्षित जैसी दिग्गज नेता को उनके गढ़ यानी नयी दिल्ली में पराजित किया था। उनके पुत्र संदीप दीक्षित को अपनी जीत की उम्मीद तो शुरू से नहीं रही होगी, उन्होंने सोचा मौका अच्छा है, अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ‘फील्डिंग’ बिछा कर उन्हें हार का स्वाद चखा दिया जाये। शायद हुआ भी ऐसा ही, केजरीवाल को हार का स्वाद चखाकर अपनी मां की हार का बदला उन्होंने ले भी लिया। संदीप दीक्षित जितने वोट ला पाये, केजरीवाल उतने ही वोटों से ही हारे हैं। अगर संदीप दीक्षित और केजरीवाल को मिले वोटों को मिला दिया जाये तो, इस गणित से केजरीवाल 479 वोटों से जीत सकते थे। मगर ऐसा नहीं हुआ और, भाजपा के प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को 4,089 वोटों से शिकस्त दी। बता दें कि तीसरे नंबर पर कांग्रेस के संदीप दीक्षित को 4,568 वोट मिले हैं। इतने ही वोटों की तो केजरीवाल को जरूरत थी! केजरीवाल को 25999 वोट मिले। संदीप दीक्षित को 4,568 वोट मिले जो आपस में मिलकर 30,567 वोट हो जाते है। जो प्रवेश वर्मा को मिले 30,088 वोटों से 479 वोट ज्यादा होते।

आप अपनी चाल चल रही थी!

मगर ऐसा नहीं माना जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कि जब आप और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा ही नहीं तो आपस के वोटों को जोड़ने या घटाने का कोई मतलब भी नहीं रह जाता है। दिल्ली का चुनाव शुरू होने काफी पहले से ही यह तय था कि अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे। दिल्ली में अपना पैर जमा चुके आप प्रमुख केजरीवाल यह बात अच्छी तरह से जानते है कि कांग्रेस को ‘जमीन’ देना कितना घातक हो सकता है। कांग्रेस को जमीन देने का मतलब है अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारना। दिल्ली ही नहीं, पंजाब तक आप की पहुंच बना चुके केजरीवाल यह बात किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कांग्रेस जैसी महत्वाकांक्षी पार्टी भविष्य में उनके लिए मुश्किलें पैदा करे। इसलिए छोटी-छोटी उन पार्टियों से तो वह लगबहियां करते रहते हैं, जिनसे फिलहाल उन्हें कोई खतरा नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस से गठजोड़ करने का मतलब है कि उसे सीटें भी देनी पड़ेंगी। सीटें देने के बाद मिलकर चुनाव भी लड़ना पड़ेगा। फिर दोनों पार्टियों की संयुक्त ताकत से कांग्रेस भी कुछ सीटें जीत जाती… बस, यही तो नहीं चाहते थे केजरीवाल! अगर ऐसा होता तो पंजाब के भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सीटें नहीं देते? केजरीवाल भविष्य का सोचकर राजनीति कर रहे थे। उनकी सोच में दिल्ली में उनका एक छत्र राज ही बसा हुआ था। इसलिए भला कांग्रेस को वह पास कैसे फटकने दे सकते थे।

कांग्रेस के लिए आप भी घातक!

अब आते हैं कांग्रेस पर। जब बार-बार चिरौरी करने के बाद भी दिल्ली में भी आप के साथ गठबंधन नहीं हुआ तब कांग्रेस ने अपनी रणनीति तय कर ली। कांग्रेस यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि दिल्ली में आप की दो बार की प्रचंड जीत उसके ही वोटों के कारण हुई है। मगर उसके गणित में चूक यह हो गयी कि जिस वोट बैंक को वह अब तक अपना माने हुए थी, वह तो 12 साल पहले उसका अपना हुआ करता था। अगर ऐसा नहीं होता तो इस बार 70 सीटों में 67 पर उसकी जमानतें जब्त नहीं होतीं। जो भी हो, कांग्रेस ने भी मन बना लिया था कि आप को दिल्ली में डैमेज करना है। इसमें वह कुछ हद तक तो जरूर सफल रही है, भले ही वह खुद नहीं कुछ कर सकी। अगर कांग्रेस अपने इरादों में कुछ और सफल हो गयी होती, यानी अगर कांग्रेस के वोटों का प्रतिशत कुछ और बढ़ जाता तब तो आप की हालत और भी पतली हो जाती। ध्यान देने वाली बात है कि कम से कम 12 सीटें ऐसी थी जहां आप की हार 6000 के वोटों या उससे कम वोटों से हुई। जो कांग्रेस के साथ रहने से उसकी अपनी हो सकती थीं। मगर यह तब होता जब दोनों साथ चुनाव लड़ते।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि कांग्रेस आप को जितना नुकसान पहुंचाने के लिए चुनाव लड़ रही थी, आप उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस को दिल्ली के आसपास नहीं फटकने देने के लिए चुनाव लड़ रही थी। यह बिलकुल वैसा था, जैसा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ किया था।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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