भारत ‘रतन’ का यूं चले जाना! नाम और काम दोनों में ‘रतन’

टाटा समूह के मुखिया रतन टाटा ने 9 अक्टूबर को आखिरी सांस ली, तो मानों देश की ही सांसें धम गयीं। रतन टाटा का जाना किसी एक इनसान का जाना नहीं है, बल्कि एक असाधारण व्यक्तित्व का हमारे बीच से चले जाना है। रतन टाटा उद्योग के शिखर पर थे, फिर भी उनके पांव जमीन पर टिके थे। वह जब तक जीये मानवता के लिए जीये।

रतन टाटा अपना कारोबार पूरी दुनिया में फैलाया। यूं कहें अपने बिजनेस के सहारे उन्होंने भारत का नाम दुनिया में रोशन किया। रतन टाटा एक ऐसे उद्योगपति थे, जो अपनी एक अलग पहचान रखते थे। टाटा सिर्फ नाम से नहीं अपने काम से भी रतन थे। वह अपनी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को लेकर हमेशा नरम और संवेदनशील रहे, इससे उनके अन्दर एक छुपे महामानव का अहसास हो जाता है।

रतन टाटा अपनी कंपनी के कर्मचारियों को ही अपनी पूंजी मानते थे। इसलिए उनकी हर सुख-सुविधा की चिंता करते थे। भारत में सरकारी नौकरियों को बड़ी तरजीह दी जाती है, ऐसे में रतन टाटा ने अपनी प्राइवेट कंपनियों में भी सरकारी नौकरियों की तरह सुविधा देकर एक मिसाल कायम की थी। रतन टाटा अपने कर्मचारियों से कितना प्यार और स्नेह करते थे कि अक्सर उन्हें अपने कर्मचारियों के साथ घुले-मिले पाया जाता था। एक तस्वीर तो ऐसी भी है जिसमें रतन टाटा अपने कर्मचारियों के बीच घुटनों पर बैठे भी नजर आए हैं। सच टाटा कम्पनी के कर्मचारी ऐसा बॉस पाकर धन्य हैं।

रतन टाटा द्वारा अपनी कंपनी के कर्मचारियों को त्यौहारों पर दिये जाने वाले तोहफे हमेशा चर्चाओं में रहते थे। उन्होंने खुद को भी टाटा समूह का एक साधारण सदस्य मानकर ही सबके साथ काम किया। रतन टाटा की यही सब बातें हैं जो उन्हें और लोगों से अलग बनाती थी। उद्योग जगत में आने वाली कई पुश्तों तक रतन टाटा को अपने कामों के लिए याद रखा जाएगा।

इतना ही नहीं, देश जब भी कोई आपदा आयी तो उन्होंने अपना खजाना देश के लिए खोल दिया। कोरोना जैसी महामारी एक बड़ा उदाहरण है। ऑक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर तक की व्यवस्था टाटा समूह ने देशभर में की। देशभर में कई अस्पताल टाटा समूह द्वारा चलाये जाने वाले अस्पतालों का उद्देश्य लाभ कमाना ना होकर लोगों की सेवा करना है। एक राष्ट्रभक्त की तरह रतन टाटा ने अपने देश के लिए हमेशा काम किया।

रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं है। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। लेकिन उन्हें ‘टाटा’ (अलविदा) हरगिज नहीं कहेंगे, क्योंकि तो हमारे दिलों में सदा रहेंगे। ऐसे महामानव मरते नहीं, अमर होते हैं। रतन टाटा को शत्-शत् नमन!

न्यूज डेस्क/समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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