झारखंड की राजनीति में यह खबर गर्म है कि रांची के होटवार के बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कैद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गोड्डा से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। बात कहीं से निकली है तो इसे सिर्फ अटकल ही नहीं मान सकते। मगर यह अटकल तब से लगायी जाने लगीं जब इंडी गठबंधन के नेता जेल में हेमंत सोरेन से मुलाकात करके लौटे। पिछले दिनों राज्य के मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन हेमंत सोरेन से मिलने जेल पहुंचे। उनके मिलने का प्रयोजन राजनीतिक था। इस मुलाकात के बाद पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन राजनीतिक पटल पर उभरने लगीं। शुक्रवार को हेमंत सोरेन के भाई और मंत्री बसंत सोरेन ने भी उनसे जेल में मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद झारखंड की राजनीतिक फिजा कुछ बदली-बदली नजर आयी। भले ही झामुमो ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन जो बातें हवा में तैर रही हैं, वह यही कह रही हैं कि हेमंत सोरेन गोड्डा संसदीय सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। चूंकि हेमंत सोरेन का मामला अभी कोर्ट में है और उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का सिर्फ आरोप ही है। इसलिए उनके चुनाव लड़ने पर कोई पाबंदी नहीं है। इसलिए उनका चुनाव लड़ना कानून सम्मत है। अब वह चुनाव लड़ते हैं या नहीं, यह तो आने वाला वक्त बतायेगा।
क्या हेमंत के बिना दिशाहीन है इंडी गठबंधन की राजनीति?
शुक्रवार को जब बसंत सोरेन हेमंत सोरेन से मिलने जेल पहुंचे तब उनके साथ राजमहल से झामुमो प्रत्याशी विजय हांसदा, सिंहभूम से झामुमो प्रत्याशी जोबा मांझी, झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय और गिरिडीह सांसद प्रत्याशी मथुरा प्रसाद महतो भी मौजूद थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर भी जेल जाकर हेमंत से मिल चुके हैं। इंडी गठबंधन के नेताओं का हर मुद्दे को लेकर जेल में हेमंत सोरेन से मिलने जाना सवाल तो पैदा करता ही है। क्या हेमंत के बिना झामुमो और इंडी गठबंधन की राजनीति दिशाहीन हो गयी है?
यह सही है कि 2019 का चुनाव जीतने के बाद हेमंत सोरेन का राज्य में जिस प्रकार कद बढ़ा उसका फायदा उनकी पार्टी झामुमो को मिला। जेल जाने से पहले तक झामुमो को उसके स्वर्णिम काल तक पहुंचा दिया। तो फिर उनके जेल जाने के बाद झामुमो में ऐसा क्या हो गया कि पार्टी अपने आपको असहाय महसूस करने लगी। झामुमो की तुलना अगर दिल्ली की आप पार्टी से करें तो स्थिति में जमीन-आसमान का अन्तर नजर आता है। झारखंड में झामुमो के प्रवक्ता ही पार्टी की बातें कहते दिखाई देते हैं जबकि अरविन्द केजरीवाल के जेल जाने के बाद उनकी पार्टी के शीर्ष नेता पार्टी की आवाज बने हुए हैं।
झामुमो ने हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को आगे तो जरूर कर दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें आगे करके उन्हें अकेले लड़ने के लिए छोड़ दिया है। जबकि पार्टी एक संयुक्त ताकत होती है। हां, यह हो सकता है कि कुछ बातें अभी भी पर्दे के पीछे पड़ी हुई है, और शायद पर्दे के पीछे ही रहे जायें। क्योंकि यह राजनीति है, राजनीति में बहुत-सी बातें कभी परदे से बाहर नहीं आतीं। सवाल कई हो सकते हैं, जवाब शायद कुछ भी नहीं। बस इतना ही कहा जा सकता है कि झामुमो दूसरी पार्टियों की तरह परिवारवाद की चासनी में डूबी पार्टी है और इस चासनी को चखने की इजाजत सबके नहीं!
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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