चाहे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हों, या फिर अरविन्द केजरीवाल, या फिर अन्य दूसरे विपक्षी दलों के नेता, प्रवर्तन निदेशालय (ED) या दूसरी एजेंसियों के निशाने पर ही क्यों हैं? क्या एनडीए में शामिल नेता वाकई दूध के धुले हैं या फिर उन पर कोई केस है ही नहीं? जांच-पड़ताल करने पर यही पता चलता है कि एनडीए में शामिल कुछ नेता हैं जिन पर भी संगीन केस हैं, लेकिन उन पर ये केस तब के हैं जब वे एनडीए का हिस्सा नहीं थे। उन्होंने बाद में एनडीए ज्वाइन की। इन बड़े नामों में असम के वर्तमान सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के करीबी रह चुके शुभेंदु अधिकारी भी शामिल हैं।
हिमंत बिस्वा शर्मा
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा असम की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। तरुण गगोई सरकार में पावरफ़ुल मंत्री रहे हिमंत बिस्वा की 2011 के चुनाव के बाद से गगोई से नहीं बनी। जिसके बाद जुलाई 2014 में हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन तब तक उनका नाम शारदा चिट फंड घोटाले से जुड़ चुका था। अगस्त 2014 में हिमंत बिस्वा सरमा के गुवाहाटी स्थित आवास और उनके चैनल न्यूज़ लाइव के दफ़्तर पर सीबीआई की छापेमारी भी हुई थी। इस चैनल की मालिक उनकी पत्नी रिंकी भुयन सरमा हैं। नवंबर 2014 को हिमंत बिस्वा से सीबीआई के कोलकाता दफ्तर में घंटों तक पूछताछ की गई। लेकिन आज वह न सिर्फ भाजपा के बड़े नेता हैं, बल्कि असम के मुख्यमंत्री भी हैं। असम में भाजपा की जमीन मजबूत करने में उनकी बड़ी भूमिका भी है। विपक्ष उन पर आरोप लगाता रहा है कि भाजपा में शामिल होने के बाद उनके खिलाफ शारदा चिटफंड घोटाले की जांच रोक दी गई है।
शुभेंदु अधिकारी
दिसंबर 2020 में पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री ममत बनर्जी के बेहद करीबी शुभेंदु अधिकारी पर भी आरोप हैं। 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को ही मात देकर जीते थे। अधिकारी आज विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। समय से थोड़ा पीछे जाया जाये तो पता चलेगा कि 2014 में पत्रकार सैमुअल मैथ्यू ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। इस स्टिंग ऑपरेशन में टीएमसी के मुख्य नेता शुभेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय और फ़िरहाद हकीम जैसे कई अन्य नेता कैमरे पर लाखों की रिश्वत लेने की बात स्वीकार करते नजर आये थे। यह कथित स्टिंग नारदा स्टिंग के नाम से जाना जाता है। विधानसभा चुनाव के बाद मई 2021 में सीबीआई ने इसी केस में चार टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया। जिनमें ममता बनर्जी की कैबिनेट के मंत्री फिरहाद हकीम और पश्चिम बंगाल के पंचायत मंत्री सुब्रता मुखर्जी भी थे। इस मामले में ईडी ने सितंबर में एक चार्जशीट फ़ाइल की।इस चार्जशीट में ना तो शुभेंदु अधिकारी का नाम था और ना ही मुकुल रॉय का। इन दोनों ही नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की थी।
एकनाथ शिंदे
बीते साल मई में शिवसेना के एक गुट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हो गया था। हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बाद एकनाथ शिंदे गुट की सरकार बनी और इसके लिए जुलाई में पहला फ़्लोर टेस्ट हुआ तो उद्धव गुट के नेताओं ने विधानसभा में ‘ईडी-ईडी’ के नारे लगाए। शिंदे आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री है और भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। शिंदे गुट पर उद्धव ने आरोप लगाया कि वह ईडी के डर और पैसों के लालच में शिवसेना के विधायकों को तोड़ रहे हैं और बीजेपी के साथ सरकार बना रहे हैं.
शिवसेना के नेता अर्जुन खोटकर 2016-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में मंत्री रहे। ईडी उन पर महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले को जांच कर रही है। ईडी ने जून 2022 में अर्जुन खोटकर के आवास पर छापेमारी की थी और उनकी 78 करोड़ की प्रॉपर्टी जब्त कर ली थी। जुलाई में उद्धव गुट छोड़ कर खोटकर शिंदे गुट में शामिल हो गए। जब वह शिंदे गुट में शामिल हो रहे थे, उस वक्त उन्होंने कहा था कि ‘वह हालात के हाथों मजबूर हैं।’ शिंदे गुट में शामिल होने के बाद उनके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई खबर नहीं है।
लगभग ऐसा ही मामला शिवसेना की नेता भावना गवली का भी है। महाराष्ट्र में भावना गवली के डिग्री कॉलेज हैं और उन पर पैसों के हेर-फेर का आरोप है. ईडी गवली के खिलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस की जांच कर रही थी. ईडी का आरोप है कि गवली ने एक एनजीओ को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. उन पर करोड़ों की धोखाधड़ी करने का आरोप है। गवली शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हुईं और इसके बाद से ईडी इस मनी लॉन्ड्रिंग के केस में क्या कर रही है इसकी कोई जानकारी नहीं है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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