Jharkhand: उन राज्यों में है जहां पर विपक्षी दलों का इंडी गठबंधन अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित करने को लेकर असमंजस में फंसा हुआ है। झारखंड में चौथे चरण से मतदान की प्रक्रिया आरम्भ होगी। उस लिहाज से 18 अप्रैल को झारखंड के पहले चरण के मतदान के लिए अधिसूचना जारी होगी। मगर गठबंधन अभी अपने उम्मीदवारों को लेकर तो उलझा हुआ है। इतना ही नहीं, गठबंधन की मर्यादा से अलग उसने अपने उम्मीदवारों के नाम भी घोषित कर दिये है। जैसे कांग्रेस ने अपने 3, झामुमो ने 2 राजद ने 1, सीपीआई (एमएल) ने 1 उम्मीदवार घोषित कर दिये हैं। यानी गठबंधन की ओर से अभी भी 7 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होनी है। गठबंधन में सही मायनों में विवाद अब शुरू होगा। वह इसलिए क्योंकि अब सीट और उम्मीदवार को लेकर रार गठबंधन में कई मतभेद हैं। सही मायनों में रार तो छिड़ भी चुकी है। जैसे गठबंधन नहीं चाहता है कि राजद पलामू और चतरा में चुनाव लड़े। इतना ही नहीं कांग्रेस के लोहरदगा के घोषित उम्मीदवार सुखदेव भगत से चुनाव नहीं लड़ने की अपील की जा रही है।
झारखंड के एक ऐसी सीट भी है जिस पर गठबंधन नहीं,बल्कि कांग्रेस में ही असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यह सीट है- रांची संसदीय सीट। इस सीट पर वर्षों से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय लड़ते आये हैं। पार्टी से उन्हें उम्मीद भी है कि वह उन्हें ही टिकट देगी। लेकिन यहां असमंजस यह है कि हाल में पांच साल पहले भाजपा का दामन छोड़ चुके रामटहल चौधरी कांग्रेस से अपना दामन जोड़ चुके हैं। रामटहल कांग्रेस में पार्टी से मिले इस वादे पर जुड़े हैं कि रांची से टिकट उन्हें ही मिलेगा। लेकिन लगता है कि कांग्रेस यह ‘वादा’ करके फंस गयी है। कांग्रेस को झारखंड में जितनी भी सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलें, लेकिन रांची सीट के लिए उम्मीदवार तय करना उसके लिए टेढ़ी खीर बन गया है। क्योंकि रामटहल चौधरी पहले ही कह चुके हैं कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह पार्टी छोड़ देंगे। दूसरी ओर सुबोधकांत सहाय भले ही यह कह रहे हों कि आलाकमान का निर्णय उनके लिए सर्वोपरि है, लेकिन नहीं लगता कि सुबोधकांत सहाय पार्टी के निर्णय को सहजता से लेंगे।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि हाल के दिनों में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों से नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया है, उन्हें टिकट भी दिया, लेकिन लगता है कि रांची और पूर्णिया का निर्णय उसके लिए गले की फांस बन गया है। पूर्णिया में क्या हुआ, सबको पता है। पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में इस शर्त पर किया था कि उन्हें पूर्णिया का टिकट मिलेगा। लेकिन राजद सुप्रीमो के चक्रव्यूह में फंस कर कांग्रेस ऐसी बेबस हो गयी, पप्पू यादव को आंखें दिखाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही है। अगर ऐसी स्थिति रांची में भी बनी तक कांग्रेस क्या करेगी?
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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