50 साल पहले भी ‘मक्खन में चर्बी की होती थी मिलावट’, 1968 में महमूद ने ऐसा ही कहा था?

Even 50 years ago, in 1968, Mahmood had said that butter was adulterated with fat.

तिरुपति मंदिर के लड्डुओं के घी में पशु चर्बी की मिलावट से आपको शायद डर लगता होगा कि कैसा जमाना आ गया। मगर ऐसा जमाना आ नहीं गया, ऐसा जमाना तो एक जमाने से ही ऐसा है। अन्तर कम या बेसी का हो सकता है। तिरुपति मंदिर का कांड सामने आने से ही यह बड़ी समस्या मालूम भले हो रही है, क्योंकि इसका सम्बंध आस्था से जुड़ा हुआ है। मगर बड़ी बात यह है कि मिलावट समाज की बड़ी और पुरानी समस्या है। आपने अपने बड़े-बुजुर्गों से यह जरूर सुना होगा कि हमारे जमाने में हर चीज शुद्ध मिला करती थी। चूंकि आप उस जमाने में नहीं थे, इसलिए कोई कुछ भी कह कर नहीं निकल सकता। आपके पास ऐसे प्रमाण हैं जिससे आप अपने बड़े-बुजुर्गों से सवाल कर सकते हैं कि उनके जमाने भी ऐसा हुआ करता था।

इस बात से किसी को इनकार नहीं होगा कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। पुराने जमाने से लेकर आधुनिक जमाने की कई फिल्मों में कालाबाजारी और मिलावट की बातों का जिक्र किया जा चुका है। यहां एक बहुत ही पुरानी फिल्म का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। ‘नीलकमल’ नाम की एक फिल्म 1968 में आयी थी। इस फिल्म में सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता महमूद पर एक गाना फिल्माया गया था- ‘खाली डब्बा खाली बोतल ले ले मेरे यार, खाली से मत नफरत करना खाली सब संसार’।

इसी गाने का एक अंतरा यहां प्रस्तुत है और आप भी विचार कीजिए, क्या मिलावट आज की समस्या है, या फिर आज से 50 साल पहले भी ऐसी समस्या विद्यमान थी।

‘खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी

शहद में गुड के मेल का डर है,

घी के अन्दर तेल का डर है

तम्बाखू में घास का ख़तरा,

सेंट में झूटी बास का ख़तरा

मक्खन में चर्बी की मिलावट,

केसर में कागज की खिलावट

मिर्ची में ईंटों के घिसाई,

आटे में पत्थर की पिसाई

व्हिस्की अन्दर टिंचर घुलता,

रबड़ी  बीच बलोटिन तुलता

क्या जाने किस चीज़ में क्या हो,

गरम मसाला लीद भरा हो।‘

तो क्या वाकई मिलावट सिर्फ आज की ही समस्या है? बिलकुल नहीं। प्रकृति मिलावट नहीं करती। धरती पर मनुष्य जब तक रहेगा, उससे ऐसा खतरा बना रहेगा।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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