बात ‘तोता-मैना’ पर आयी! कांग्रेस राज का ‘पिंजरे का तोता’ मोदी राज में आयेगा बाहर?

दिल्ली के मुख्यमंत्री को उनके राज्य की आबकारी नीति के कथित घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते  हुए जमानत दे दी। 176 दिन तिहाड़ जेल में रहने के बाद केजरीवाल जेल से रिहा हो गया। दिल्ली में आप समर्थकों में जश्न का माहौल है। यह सब बातें अपनी जगह हैं। केजरीवाल की रिहाई के वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के ऊपर जो टिप्पणी की है यह एक सवाल तो जरूर करती है कि क्या वाकई में ऐसा है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि आप (सीबीआई) पिंजरे के तोते की छवि से बाहर निकलें। तो क्या सीबीआई वाकई में ‘पिंजरे का तोता’ है जिसे सरकारें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करती हैं? यह इशारा सिर्फ भाजपा की मोदी सरकार के ऊपर ही नहीं है, यह इशारा कांग्रेस सरकारों की ओर भी है। क्योंकि सीबीआई के लिए पहली बार ‘पिंजरे का तोता’ वाली उपमा का प्रयोग पहली बार कांग्रेस राज के दौरान किया गया था।

अरविन्द केजरीवाल के मामले में हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा कि सीबीआई द्वारा की गयी गिरफ्तारी गलत नहीं है। लेकिन उसके उद्देश्य पर सवाल जरूर उठाये। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों में से एक जस्टिस भुइयां ने कहा, CBI की गिरफ्तारी केवल प्रवर्तन निदेशालय (ED) मामले में जमानत को निरर्थक बनाने की एक महज कोशिश है। 22 महीने से अधिक समय तक CBI को गिरफ्तारी की जरूरत महसूस नहीं हुई। इस तरह की कार्रवाई गिरफ्तारी पर ही गंभीर सवाल उठाती है। CBI पिंजरे में बंद तोता वाली छवि बदले।

वहीं, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम अपीलकर्ता की दलीलों से सहमत नहीं हैं कि CBI दंड प्रकिया संहिता की धारा 41 का पालन करने में विफल रही। केजरीवाल की गिरफ्तारी कानूनी थी और इसमें कोई प्रक्रियागत अनियमितता नहीं थी। मुकदमे के दौरान अभियुक्तों को लंबे समय तक जेल में रखना उचित नहीं ठहराया जा सकता। जब मुकदमा पटरी से उतर जाता है तो अदालतें स्वतंत्रता की ओर झुकती है।

सीबीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कुछ और टिप्पणियां

  • सीबीआई तोता है और इसके कई मालिक हैं। सीबीआई ऐसा तोता बन चुकी है जो अपने मालिक की बात को ही दोहराता है।
  • हम चाहेंगे कि सुनवाई की अगली तारीख 10 जुलाई तक आप (सरकार) सीबीआई को बाहरी दखल से मुक्त करने के लिए कानून बना दें। हम जानते हैं कि इस काल में संसद नहीं चलेगी, लेकिन कानून बनाने के और भी रास्ते हैं।
  • सीबीआई को सरकार और उसके अधिकारियों द्वारा डाले गए तमाम दबावों और विपरीत परिस्थितियों के बीच अपने पैरों पर खड़े होना आना चाहिए।
  • सीबीआई का काम सरकार के अधिकारियों से बातचीत करना नहीं बल्कि सच का पता लगाना है।
  • सीबीआई सरकार के प्रति जवाबदेह है लेकिन सरकार उसकी रिपोर्ट को छू भी नहीं सकती है। जांच रिपोर्ट कोई प्रगति रिपोर्ट नहीं है, जो सरकार और उसके अधिकारियों के साथ बांटी जाए।
  • सीबीआई जांच रिपोर्ट को किसी के साथ बांट नहीं सकती, सिवा अपने निदेशक और जांच कर रही 33 सदस्यीय टीम के।
  • यह बेहद चिंता की बात है कि सरकार सीबीआई के जांच मामलों में दखल दे रही है। यह ठीक नहीं है कि पीएमओ और कोयला मंत्रालय ने सीबीआई अधिकारियों को कोयला घोटाले की ड्राफ्ट रिपोर्ट में बदलाव की सलाह दे।

कांग्रेस राज में ‘कोलगेट’ मामले में प्रयोग हुआ था ‘पिंजरे का तोता’

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के लिए ‘पिंजरे का तोता’ शब्द का प्रयोग पहली बार नहीं किया है। इसका प्रयोग पहले भी हो चुका है। 2013 में दिल्ली की एक अदालत में उस समय सन्नाटा पसर गया था जब एक नाराज सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने सीबीआई की निंदा करते हुए उसे “पिंजरे में बंद तोता” और “अपने मालिक की आवाज” करार दिया था। न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा ने सरकार के शीर्ष वकील अटार्नी जनरल की कड़ी आलोचना की, क्योंकि उन्होंने कहा कि यह कोयला क्षेत्र के लाइसेंसों को निजी कम्पनियों को आवंटित करने में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच में हस्तक्षेप का स्पष्ट सबूत है, जिसे मीडिया ने “कोलगेट” नाम दिया था।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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