न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 7 जनवरी को झारखंड आ रहे हैं। वैसे तो अमित शाह चाईबासा में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करने आ रहे हैं, लेकिन राजनीतिक कारणों से उनका यह दौरा बेहद खास है। झारखंड में भले ही चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन भाजपा ने अपनी तैयारियां अभी से शुरू कर दी है। 16-17 जनवरी को नयी दिल्ली में भाजपा के कार्यकारिणी की बैठक भी होने वाली है जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीति बनायी जायेगी।
गृहमंत्री अमित शाह के झारखंड दौरे की तैयारियां अंतिम दौर में हैं। पश्चिम सिंहभूम के चाईबासा में अमित शाह के दौरे को लेकर कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह भी देखा जा रहा है। शाह का यह दौरा 2024 लोकसभा चुनाव के मंथन को लेकर है। सिर्फ चाईबासा ही नहीं, राजमहल सीट पर भी अमित शाह की निगाहें हैं। बता दें, 2019 लोकसभा में हुए चुनाव में 14 सीटों में से 12 पर बीजेपी को शानदार जीत मिली थी जबकि दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। ये दो सीटें थीं- पश्चिम सिंहभूम और राजमहल। पश्चिम सिंहभूम में कांग्रेस और राजमहल सीट में झामुमो विजयी हुए थे।
शाह का लक्ष्य अबकी बार झारखंड में 14-0
झारखंड में 14 लोकसभा सीटों में 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 14 में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अगला लोकसभा चुनाव 2024 में होना है। झारखंड में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा का चुनाव भी होगा। बीजेपी इस बार झारखंड में कोई चूक नहीं होने देना चाहती है और उस बार 14 ऑफ 14 के फॉरमेट में काम कर रही है।
पश्चिम सिंहभूम और राजमहल का क्या है जातीय समीकरण
पश्चिम सिंहभूम आदिवासी बहुल क्षेत्र है। चूंकि यह सुरक्षित सीट है इसलिए प्रत्येक पार्टी से अनुसूचित जनजाति समुदाय से ही उम्मीदवार खड़ा करती है। अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के कारण इस समुदाय के वोटों का बिखराव हो जाता है। अनुसूचित जनजाति में उरांव व ईसाई खासे सक्रिय रहते हैं। उरांव व ईसाई समुदाय के लोगों का मतदान औसत अन्य समुदायों से बेहद ज्यादा है। अनुसूचित जनजाति समुदाय में हो समुदाय के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है।
जहां तक राजमहल की बात है तो यहां आदिवासी और मुसलमान चुनाव के परिणाम तय करते हैं। पहाडिय़ों से घिरा राजमहल 37 फीसदी आदिवासी हैं तो 29 फीसदी मुसलमान। दोनों मिलकर 66 प्रतिशत होते हैं। जिस पार्टी ने इन दोनों समुदाओं का साध लिया, उसकी बल्ले-बल्ले होना तय है। राजमहल संसदीय सीट भी आदिवासी के लिए आरक्षित है।
दोनों लोकसभा सीटें भाजपा को जीतनी हैं तो उन्हें यहां के जातीय समीकरण को भेदना होगा। अमित शाह का इसी पर फोकस होगा और वह अभी से रणनीति तैयार कर उस पर काम करना शुरू करेंगे। आने वाले दिनों में भाजपा की गतिविधि तय कर देगी कि भाजपा आगामी चुनावों को लेकर किस रणनीति पर चल रही है।
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