न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
आज से श्रावण मास आरम्भ हो गया। श्रावण भगवान का सबसे प्रिय महीना है। इस महीने में देश और देश के बाहर स्थित शिवालयों में भक्त अपने भगवान को जल अर्पण कर मन्नत मांगते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव भक्तों की थोड़ी सी आराधना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी भक्त भगवान शिव की सच्ची श्रद्धा से आराधना करता है, उसके सभी कष्ट दूर कर देते हैं। तो सावन के महीन में सभी अपनी मनोकामनाएं लेकर शिव मंदिरों में जाते हैं और शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। लेकिन आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि हम सभी तो भगवान शिव की आराधना करते हैं, लेकिन खुद शिव ध्यान मुद्रा में रहते हैं, आखिर वह किसका ध्यान करते हैं।
इसको लेकर कई धारणाएं हैं- कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा करना श्रीराम या श्रीकृष्ण के प्रति शिव की अत्यधिक भक्ति हैं। शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा श्रीराम का ध्यान लगाने की बात कही गई है> इसके बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक बार माता पार्वती ने शिव के ध्यान से उठने के बाद शिव से पूछा कि आप तो स्वयं ही देवों के देव हैं, इसलिए तो आपको देवाधिदेव कहते हैं, फिर आप किसका ध्यान करते हैं। भगवान शिव राम का ध्यान करते हैं। रामेश्वरम में श्रीराम ने शिव की पूजा की थी, राम + ईश्वर रामेश्वर, मतलब राम के भगवान। राम की पूजा करने वाले शिव वैष्णव पुराणों में ही मिलते हैं। पुराण पौरुषेय हैं, मतलब वे किसी मनुष्य द्वारा निर्मित हैं। वहीं वेद अपौरुषेय हैं, जिनकी रचना मनुष्यों ने नहीं की है। वैदिक काल में और रामायण और महाभारत के समय में शिव पूजा सार्वभौमिक थी। सभी पांडवों ने शिव की पूजा की, कुंती ने बच्चों के लिए शिव की पूजा की, कृष्ण ने एक पुत्र के लिए शिव की पूजा की, राम ने शिव की पूजा की, रावण ने शिव की पूजा की।
अगर आप शिव की पूजा करते हैं तो उनकी पूजा करें, सच्चे मन से करें और इन विचारों को एक किसी निष्कर्ष तक पहुंचा लें कि शिव किसकी पूजा करते हैं। तो इस बात का ध्यान रखें कि आपकी मान्यता किसी अन्य की मान्यता से कम या ज्यादा अच्छी बुरी या खराब नहीं हो सकती है। कुल मिलाकर आपका विश्वास ही शिव हैं।
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