न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
देश के दो राज्य आपस में भिड़े गये हैं। वे जो दावा कर रहे हैं, उससे पीछे हटने को कोई तैयार नहीं है। दोनों राज्यों का दावा है कि भगवान रामलला के परमप्रिय श्रीहनुमानजी का जन्म स्थान कौन-सा है। ये दो राज्य हैं- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश। दोनों की हनुमान की जन्मस्थली को अपने राज्य का बता रहे हैं। दोनों राज्य दूसरे राज्य के दावे को मानने को तैयार नहीं है। यहां बता दें, एक राज्य और भी है जहां हनुमानजी की जन्मस्थली है!
आंध्र प्रदेश की धार्मिक संस्था तिरुमला तिरुपति देवस्थानम अंजनाद्री मंदिर में एक समारोह आयोजित कर रहा है, जहां पिछले साल अप्रैल में रामनवमी पर हनुमान जन्मस्थान के रूप में औपचारिक अभिषेक किया गया था। जाहिर है आंध्र प्रदेश की यह धार्मिक संस्था इसी को हनुमानजी का जन्मस्थान मानती है। लेकिन कर्नाटक का श्रीहनुमान जन्मभूमि क्षेत्र ट्रस्ट इससे सहमत नहीं है। यह वाल्मीकि रामायण में किये गये उल्लेख के आधार पर दावा कर रहा है कि हनुमानजी का जन्म किष्किंधा के अंजनाहल्ली में हुआ है। माना जाता है कि यह स्थान हम्पी के निकट तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।
वहीं, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम कमेटी का कहना है कि पुराणों और शिलालेखों, प्राचीन ग्रंथों में हनुमानजी के जन्मस्थल के रूप में अंजनाद्री का उल्लेख है, जिसे अब तिरुमाला कहा जाता है। पिछले साल अप्रैल में तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ने अंजनाद्री के दावे को रेखांकित करते हुए एक बुकलेट भी पब्लिश किया था। ऐसा ही एक बुकलेट कर्नाटक के हनुमान जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने भी जारी कर हनुमान जन्मस्थान पर अपना दावा पेश किया था। बता दें, इस विवाद को सुलझाने के लिए पिछले साल मई में दोनों पक्षों में बातचीत हुई थी, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका।
झारखंड के गुमला में भी है हनुमानजी की जन्मस्थली
एक मान्यता यह भी है कि हनुमान जी का जन्म गुमला जिले के आंजन पहाड़ पर हुआ था। यहां पहाड़ पर एक गुफा है जहां से एक मूर्ति मिली थी और यह पूरी दुनिया में इकलौती मूर्ति है जिसमें माता अंजनी बाल हनुमान को अपनी गोद में लिए बैठी हैं। जनजातीय जनश्रुति के अनुसार मान्यता है कि आंजन गांव का नाम माता अंजनी के नाम से ही पड़ा है। इस गांव में आज भी सैकड़ों शिवलिंग जहां-तहां बिखरे पड़े हैं, जबकि कई भूमिगत हैं। मान्यता है कि माता अंजनी प्रतिदिन एक महुआ के पेड़ से दतवन कर, एक तालाब में स्नान करती थीं और एक शिवलिंग पर जल अर्पण करती थीं।
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