गर्मी की दस्तक के साथ ही जल संकट गहराने लगी हैं । कई ऐसे इलाके है जहां लोगों को पीने के पानी के लिए प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है । कोडरमा जिले के मरकच्चो प्रखंड मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर जंगल से घिरे डगरनवां पंचायत के टेपरा गांव के लोग प्रतिदिन नदी की बालू को खोदकर पीने की पानी की व्यवस्था करते हैं । बता दें कि यंहा 20 घरों में 200 से अधिक आदिवासी परिवार रहते हैं जिनको हर दिन पीने के पानी के लिए जद्दोजहत करना पड़ता हैं । इस गाँव के लोगों को बरसात के दिनों में मुसीबत ऐसी झेलनी पड़ती हैं कि अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसे सही इलाज नहीं मिल पाता और बच्चों का स्कूल से 3 महीने तक संपर्क भी टूट जाता है । टेपरा गांव की निवासी रेशमी देवी ने बताया कि गांव में पानी की काफी बड़ी समस्या है वहीं बरसात के दिनों में गांव का संपर्क दूसरे गांवों से पूरी तरह टूट जाता है । बरसात में नदी का जल स्तर बढ़ने पर करीब 12 से 15 फीट पानी गांव में घुस जाता हैं जिससे 3 महीने तक लोग नदी से घिरे गाँव मे कैद हो जाते हैं । टेपरा गांव के ग्रामीणों की समस्या बरसात के बाद गर्मी में फिर से शुरू हो जाती हैं । गांव के किनारे स्थित नदी से महिलाएं बालू में गड्ढा खोदकर बूंद-बूंद पानी इकट्ठा करती हैं और अपनी प्यास बुझाती हैं । ग्रामीणों की माने तो पानी की कमी की वजह से लोगों को नहाने में काफी परेशानी होती हैं वहीं नदी के दूषित पानी को पीकर बच्चे और बड़े अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं । गांव की मुन्नी देवी ने बताया कि अभी गर्मी की शुरुआत में नदी किनारे उन्हें करीब एक फीट तक बालू की खुदाई कर पानी का जुगाड़ करना पड़ रहा है वहीं आने वाले दिनों में जब गर्मी बढ़ने पर नदी का पानी सूखने लगता हैं तब नदी के बालू को करीब 5 से 6 फीट गहरा खोदना पड़ता हैं तब जाकर कहीं उन्हें पानी का रिसाव मिलता है और फिर छोटे बर्तन से धीरे-धीरे जमा पानी को ग्रामीण इकट्ठा करते हैं जिसका इतेमाल वे अपनी प्यास बुझाने और खाना बनाने समेत अन्य कार्य में करते हैं । ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के दिनों में नदी का जलस्तर बढ़ने पर गांव के लोग गाँव मे ही कैद हो जाते हैं ऐसे में यदि कोई बीमार पड़ जाता हैं तो उसे चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने में भी काफी मुश्किल होती है । कई बार लोग बीमार व्यक्ति को खाट पर लेटाकर नदी पार कर डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं । ग्रामीणों की माने तो गांव में शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं होने पर मजबूरन लोगों को नदी किनारे बालू से पानी की बूंद-बूंद व्यवस्था करनी पड़ती है । इस दौरान पानी भी काफी गंदा रहता है और पानी में कीड़े भी मिलते रहते हैं जिससे बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है ।
जल मीनार फेल होने के बाद कर्मी ले गए उपकरण
बड़कू टुडू ने बताया कि पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल झुमरी तिलैया के द्वारा एकल ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत सोलर आधारित 5000 लीटर का जल मीनार वर्ष 2020 में स्थापित किया गया था. लेकिन जल मीनार के लिए कराया गया बोरिंग फेल हो गया. शुरुआत में कुछ दिनों तक पानी आया इसके बाद जब पानी आना बंद हो गया तो पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कर्मियों को इसकी सूचना दी गई. जिसके बाद जल मीनार में लगे स्टार्टर और स्विच बोर्ड एवं मोटर को कर्मी अपने साथ लेकर चले गए. इसके बाद दोबारा जल मीनार शुरू नहीं हो पाया. पानी नहीं होने पर गांव के लोग गर्मी के मौसम में किसी प्रकार की कोई खेती भी नहीं कर पाते हैं. बरसात के दिनों में उपजाए अनाज को ही सुरक्षित रख कर लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.
नई योजना पर वन विभाग की रोक, बनाया जा रहा है सामंजस्य
ग्रामीणों की इस समस्या पर उपायुक्त कोडरमा मेघा भारद्वाज ने बताया कि टेपरा गांव वन क्षेत्र में बसा हुआ है. वन विभाग के द्वारा वन क्षेत्र में किसी प्रकार की नई योजना दिए जाने पर रोक लगाई गई है. ग्रामीणों की समस्या को दूर करने की दिशा में डीएफओ से सामंजस स्थापित कर जिला प्रशासन लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने की प्रक्रिया में जुट गई है.
कोडरमा से भोला शंकर की रिपोर्ट