न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
अखंड सौभाग्य की कामना से किया जाने वाला व्रत वट सावित्री व्रत इस वर्ष स्त्रियां 30 मई को रखेंगी। स्त्रियां वट वृक्ष में कच्चा सूत लपेट कर उसकी परिक्रमा करती और पूजा के समय सती सावित्री की कथा सुनती हैं। इस व्रत को करके सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, पुत्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं। वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। सुहागन स्त्रियां इस दिन हाथों में मेहंदी लगाकर, 16 शृंगार कर यह व्रत रखती हैं। सोमवती अमावस्या का संयोग बनने के कारण इस बार के इस व्रत का महत्व काफी बढ़ गया है। ज्योतिषियों के अनुसार, 30 वर्षों के बाद ऐसा शुभ संयोग बन रहा है।
वट वृक्ष की ही क्यों होती है पूजा?
सभी वृक्षों में वट वृक्ष को दीर्घायु माना जाता है। इसी को भावना से जोड़कर वट वृक्ष की पूजा कर स्त्रियां पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान् के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे। इस दिन गुड़ आटे को मिलाकर गोलाकर पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें सुरा कहते हैं। सुरों की माला बनाकर वट वृक्ष को चढ़ाई जाती है। साथ ही एक माला को गले में पहना जाता है। इसके अलावा इस दिन भीगे हुए काले चने को और वट वृक्ष की ताजी कोंपलों को पानी के साथ निगलकर यह व्रत खोला जाता है।
वट सावित्री का शुभ-मुहूर्त
- 30 मई: वट सावित्री व्रत, दिन सोमवार
- 29 मई: दोपहर 2:55 मिनट से व्रत प्रारंभ
- 30 मई: शाम 5 बजे व्रत समाप्त
व्रत की पूजन सामग्री
- सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां
- धूप
- दीप
- घी
- बांस का पंखा
- लाल कलावा
- सुहाग का समान
- कच्चा सूत
- भिगोया हुआ चना
- बरगद का फल
- जल से भरा कलश
पूजन विधि
- सुबह घर की सफाई, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गंगा जल से पूरे घर में को पवित्र करें।
- बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति रखें।
- दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों रखें।
- वट वृक्ष के नीचे ले रख कर ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
- पूजा के पश्चात वट वृक्ष की जड़ में पानी दें।
- जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप आदि से पूजा करें।
- इसके पश्चात वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 16 परिक्रमा करें।
- भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास या बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
- पूजा समाप्त होने पर ब्राह्मणों को दान दें।
- सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें।
सावित्री-सत्यवान् की कथा
सावित्री प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की इकलौती कन्या थी। सावित्री ने निर्वासित और वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् को पतिरूप में स्वीकार किया। देवर्षि नारद के समझाने पर कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है, सावित्री अपने निश्चय पर दृढ़ रही। माता-पिता समझाने पर भी वह नहीं मानी। इसके पश्चात सावित्री का सत्यवान् के साथ विवाह हो गया। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गयी। अपने पति और अपने अंधे सास-ससुर की सेवा में निष्ठा से करने लगी। धीरे-धीरे सत्यवान् की मृत्यु का दिन आ पहुंचा।
उस दिन, सत्यवान् जब लकड़ियां काटने के लिए जंगल जाने को तैयार हुआ। सावित्री सत्यवान् के महाप्रयाण का दिन होने के कारण चिन्तित हो रही थी। सत्यवान् जंगल की तरफ लकड़ियां काटने चला तब सावित्री ने भी साथ चलने का आग्रह किया। सत्यवान् की स्वीकृति और सास-ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री पति के साथ वन चल पड़ी। सत्यवान लकड़ियां काटने वृक्ष पर चढ़ा, परन्तु तुरंत ही उसे चक्कर आने लगा और वह कुल्हाड़ी फेंककर नीचे उतर आया। पति का सिर अपनी गोद में रखकर सावित्री उसे अपने आंचल से हवा देने लगी तभी भैंसे पर सवार यमराज वहां आ पहुंचे और उन्होंने सत्यवान् के शरीर को डोरी में बांधकर अपने साथ चल पड़े। सावित्री ने व्याकुल होकर आर्त स्वर में पूछा- हे देव! आप कौन हैं और मेरे प्राणनाथ को कहां ले जा रहे हैं? यमराज ने उत्तर दिया- हे तपस्विनी! तुम पतिव्रता हो, अत: मैं तुम्हें बताता हूं कि मैं यम हूं और आज तुम्हारे पति सत्यवान् की आयु क्षीण हो गयी है, अत: मैं उसे बांधकर ले जा रहा हूं। तुम्हारे सतीत्व के तेज के सामने मेरे दूत नहीं आ सके, इसलिए मैं स्वयं आया हूं। यह कहकर यमराज दक्षिण दिशा की तरफ चल पड़े।
यमराज ने सावित्री को दिये तीन वरदान
सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यह देखकर यमराज ने सावित्री को समझाने का काफी प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी। सावित्री का पति के प्रति प्रेम और समर्पण देखकर यमराज ने सावित्री से कहा कि “हे देवी, तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो और यहां से लौट जाओ।”
तब सावित्री ने कहा कि “मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, इसलिए आप उनकी आंखों की ज्योति लौटा दीजिए, जिससे वे दोबारा इस संसार को देख सकें।” यमराज ने सावित्री को यह वरदान दे दिया। फिर सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री फिर उनके पीछे-पीछे चलने लगी।
ये देखकर यमराज ने सावित्री से कहा “देवी तुम वापस जाओ। इस मार्ग पर कोई जीवित मनुष्य नहीं चल सकता।”
तब सावित्री ने कहा कि “भगवन मुझे मेरे पतिदेव के पीछे-पीछे चलने का पूर्ण अधिकार है और ये मेरा कर्तव्य भी है। इसलिए ये किसी भी तरह से अनुचित नहीं है।” सावित्री की बात सुनकर यमराज और भी प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने कहा कि “ मेरे ससुर राजा थे, लेकिन दुश्मनों ने उनका राज्य छीन लिया है, इसलिए वे वन-वन में भटक रहे हैं। उन्हें उनका राज्य पुन: मिल जाए।” यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया। इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलते हुए यमलोक के द्वार तक पहुंच गई।
यह देखकर यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस बार सावित्री ने यमराज से 100 संतान और अखंड सौभाग्यवती बनने का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया।
इसके बाद सावित्री ने यमराज से कहा कि “प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। लेकिन मेरे पति के प्राण तो आपके पास हैं ऐसे में आपका ये वरदान कैसे पूरा हो सकता है।”
सावित्री की बात सुनकर यमराज ने सत्यवान के प्राण छोड़ दिए और यमलोक चले गए।
सावित्री उसी स्थान पर लौट आयी जहां उसके पति सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। यमराज के वरदान से वह पुन: जीवित हो गया। सावित्री और सत्यवान जब अपने घर लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका राज्य उन्हें पुन: मिल गया है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।
यह भी पढ़ें: IPL 2022: गुजरात का पहली ही बार में फाइनल में पहुंच जाना कहीं सत्ता (सट्टा) का खेल तो नहीं!