झारखंड के शिक्षामंत्री जगरनाथ महतो(Jagarnath Mahto) का निधन हो गया. वो कई महीनों से बीमार थे. चेन्नई में उनका इलाज चल रहा था, वहीं पर उन्होंने आखिरी सांस ली. झारखंड के शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो (Jagarnath Mahto)का बचपन गरीबी में बीता. उनके परिवार की स्थिति ऐसी नहीं कि वो पढ़ाई पूरी कर सकें. प्राइमरी की पढ़ाई के बाद मैट्रिक पास करने से पहले ही उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी.लेकिन उन्हें (Jagarnath Mahto) शिक्षा के प्रति आगाध प्रेम था. उन्हें खुद शिक्षा ग्रहण करने की ललक थी वहीं स्कूल के बच्चों को पढ़ाने और पढ़ाई के प्रति उन्हें जागरूक करने के लिए उत्सुक रहते थे.
घूम-घूमकर बच्चों को जगाया करते थे
वह खुद ब्रह्म मुहूर्त में मैट्रिक के परीक्षार्थियों को जगाने निकलते थे. मैट्रिक की परीक्षा के दौरान जगरनाथ महतो (Jagarnath Mahto) अपने विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में घूम-घूमकर बच्चों को जगाया करते थे. झारखंड में जब तक मैट्रिक की परीक्षा होती थी, वह सुबह चार बजे से पहले उठकर तैयार हो जाते थे. वह बच्चों को ब्रह्म मुहूर्त में अध्ययन करने की सलाह देते थे और इसके फायदे भी बताते थे . जब कभी मौका मिलता था वो बच्चों को पढ़ाने का काम भी कर लेते थे . उनकी यह गहरी इच्छा थी कि सरकारी स्कूल को निजी स्कूलों की तरह बना दिया जाए, ताकि अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराने लगे.
सरकारी स्कूलों के यूनिफॉर्म और भवन के रंग पर हुआ विवाद
शिक्षा मंत्री रहने के दौरान क्लास एक से पांच तक छात्र-छात्राओं के यूनिफॉर्म का कलर कोड नेवी ब्लू एवं पिंक और क्लास 6 से 12वीं तक के छात्र-छात्राओं का यूनिफॉर्म ग्रीन-व्हाइट करने का उन्होंने (Jagarnath Mahto)जो फैसला लिए था. उससे काफी विवाद उभरा. इस निर्णय को तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा करार दिया गया.
झारखंड में छात्रों ने किया बेहतर प्रदर्शन, रिजल्ट में आया सुधार
झारखण्ड में मैट्रिक और इंटर की परीक्षाओं में इनके कार्यकाल के दौरान रिजल्ट अच्छे हुए .सफल छात्रों का प्रतिशत भी बढ़ा. कोरोना काल के दौरान बच्चों की फीस माफ़ी को लेकर इन्होंने अभिभावक और स्कूल प्रबंधन के बीच बेहतर समन्वय बनाने की शुरुआत की. इन्होंने श्रेष्ठ पदर्शन करने वाले छात्रों को लैपटॉप बांटे जाने को लेकर पहल की थी, हालांकि इसे कार्यरूप नहीं दे पाए , लेकिन उनहोंने अपने स्तर से मैट्रिक के टॉपर को कार देने की घोषणा की थी. कुल मिलाकर इन्होने आने शिक्षा मंत्री के कार्यकाल में राज्य की शिक्षा व्वस्था को दुरुस्त करने का काम किया.
मद्य निषेध विभाग राजस्व वसूली का अपना लक्ष्य नहीं पा सका
झारखंड में तय टारगेट के मुताबिक शराब नहीं बिकने का सीधा असर सरकार के खजाने पर पड़ा है. उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग पर जगरनाथ महतो के कार्यकाल में सरकार की नीति को काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा। झारखंड सरकार ने उत्पाद विभाग के राजस्व को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीएसएमसीएल) को परामर्शी बनाया था। मगर चालू वित्त वर्ष में उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग राजस्व वसूली का अपना लक्ष्य नहीं पा सका। जिसके बाद विभागीय मंत्री रहे जगरनाथ महतो को सीएसएमसीएल को परामर्शी से हटाने का आदेश जारी करना पड़ा । इस संबंध में उन्होंने विभागीय सचिव को मुख्य सचिव या सदस्य राजस्व पर्षद की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी गठित कर नई उत्पाद नीति की समीक्षा कराने का भी आदेश जारी किया।

नई शराब नीति ने बढ़ाई थी समस्या
इनके उत्पाद मंत्री के कार्यकाल में नई नीति लागू होने के बाद भी राजस्व नहीं बढ़ सका।झारखंड शराब व्यापारी संघ को मंत्री को पत्र लिखकर मांग करना पड़ा कि अगले वित्त वर्ष में शराब की बिक्री उनके हाथों में दे दिए जाएं । इतना ही नहीं राज्य में काफी समय से शराब में पानी मिलाकर बेचे जाने की शिकायतें भी मिल रही थी। साथ ही राज्य में एमआरपी से अधिक कीमत वसूलने की भी शिकायत मिल रही थी। वही राज्य में शराब में पानी मिलाकर बेचने की लगातार शिकायतें मिली। हाल में उत्पाद विभाग के एक दारोगा के भाई को इसमें संलिप्त पाने पर दारोगा को निलंबित कर दिया गया। केस भी दर्ज कराया गया। इसके अलावा राज्यभर में एमआरपी से अधिक कीमत वसूलने की शिकायत भी मिली । झारखंड में अभी सरकार खुद ही शराब बेच रही है। इसके लिए छत्तीसगढ़ मॉडल को लागू किया गया। विपक्ष ने इसे सरकार और विपक्ष की नाकामी बताकर इसकी आलोचना की।