सिरमटोली केन्द्रीय सरना स्थल पर बनाये जाने वाली इमारत पर सवाल
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
विश्व पृथ्वी दिवस पर केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रकृति संरक्षण का सुन्दर संदेश दिया है। बता दें, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरहुल पर्व पर सिरमटोली सरना स्थल के विकास की घोषणा के बाद भवन निर्माण का शिलान्यास भी कर दिया, लेकिन अर्जुन मुंडा ने इसे आदिवासी संस्कृति के खिलाफ बताकर हेमंत सोरेन की आदिवासी सोच पर ही सवाल उठाए हैं। सिरमटोली स्थित केन्द्रीय सरना स्थल के विकास के लिए बनने वाले पांच मंजिला भवन पर जनजातीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने न सिर्फ सवाल उठाये हैं, बल्कि सीएम को सलाह भी दी है।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर रांची के सिरमटोली में सरना पूजा स्थल पर भवन निर्माण के शिलान्यास पर श्रद्धालुओं के कल्याण की जो चिंता जाहिर की है, यह सही है, लेकिन सरना पूजा-स्थल पर पांच मंजिला संरचना का निर्माण चिंता का विषय है, क्योंकि यह आदिवासी धर्म और संस्कृति नहीं है। आदिवासी समुदाय खुद को इमारतों से नहीं, बल्कि प्रकृति और पारिस्थितिक संतुलन से जोड़ता है।
सरना पूजा स्थल एमएस खतियान में प्लॉट नं. 1096 पर है, जिसका स्वामित्व स्वर्गीय मंगल पाहन के नाम पर है। कल्याण विभाग ने न तो इस स्थल के वास्तविक स्वामियों से कोई अनुमति मांगी है और न ही उन्हें स्थल पर इस प्रस्तावित निर्माण के बारे में पहले से अवगत कराना उचित समझा है। साथ ही यह पूरी कवायद आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने की आड़ में की जा रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार आदिवासी पूजा स्थल पर भवन बनाकर आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। जबकि, इसके विपरीत, आदिवासी संस्कृति का सच्चा सादृश्य प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की अवधारणा को बढ़ावा देने के माध्यम से है। कल्याण विभाग वास्तव में आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने और संरक्षित करने का इरादा रखता है, तो वह पांच मंजिला इमारत बनाने के बजाय साल और अन्य पेड़ लगाए और पर्यावरण के अनुकूल झोपड़ियां और शेड बनाएं। यदि राज्य सरकार सरना भवन का निर्माण करना चाहती है, तो वह शहर में अन्य प्रमुख स्थल चुन सकते हैं। मेरा आग्रह है कि इसे सरना पूजा स्थल के रूप में छोड़ दें। इसके अतिरिक्त जनजातीय कला और संस्कृति के लिए एक जनजातीय संग्रहालय सह केंद्र भी बनाया जा सकता है।
मैं एक बार फिर इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि आदिवासी धर्म इमारतों के निर्माण से नहीं, बल्कि प्रकृति की पूजा और पारिस्थितिक सद्भाव में रहने से परिलक्षित होता है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया इस निर्णय पर पुनर्विचार करें और इसके लिए उचित निर्देश जारी करें।
यह भी पढ़ें: Earth Day 2022: Google के Doodle में दिखा कैसे बदल रही धरती, पर्यावरण बचाना है तो खुद को बदलना होगा