लोकसभा चुनाव में NDA और INDIA में दांव-प्रतिदांव चल रहे हैं। भाजपा अबकी बार 400 सीटों के दांव लगाकर आगे बढ़ रही तो तो इंडी गठबंधन अबकी बार मोदी सरकार को सत्ता से दूर रखने के लिए बेकरार है। इंडी गठबंधन अपनी इरादों में कितना सफल हो पायेगी, यह तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन भाजपा चुनाव और मतगणना से पहले ही तीन सीट ‘अपनी झोली’ में डाल चुकी है। भाजपा का दावा अगर 400 सीटों का है तो अब उसे 397 सीटों की और जरूरत होगी।
आखिर भाजपा ने चुनाव से पहले ही तीन सीटें कैसे जीत लीं? दरअसल, ऐसा अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में ‘कुछ ऐसा हुआ’ जिसकी वजह से तीन सीटें भाजपा के पॉकेट में आ गयी हैं। एक सीट मध्यप्रदेश के खजुराहो की है, तो दूसरी सीट गुजरात के सूरत की है तो तीसरी सीट मध्यप्रदेश के इंदौर की है। तो आइये देखते हैं कि इन तीन सीटों पर हुआ क्या-
खजुराहो (मध्यप्रदेश)
इंडी गठबंधन के समझौते के तहत मध्यप्रदेश की खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गयी थी। सपा ने यहां से मीरा यादव को पार्टी का टिकट दिया था। लेकिन नामांकन के बाद उनका नामांकन चुनाव आयोग ने रद्द कर दिया। मीरा यादव के नामांकन को रद्द करने की वजह हस्ताक्षर नहीं करना और पुरानी नियमावली के अनुसार फॉर्म भरना रही है। इसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने काफी हो-हंगामा मचाया, मगर अब क्या हो सकता है- जब चिड़िया चुग गयी खेत।
सूरत (गुजरात)
मतदान से पहले ही भाजपा ने सूरत लोकसभा सीट जीत ली है। यहां से भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध चुनाव जीत गए हैं। दरअसल, इस सीट कांग्रेस के दो उम्मीदवारों ने नामांकन किया था और दोनों के ही नामांकन रद्द कर दिये। इसके बाद बाकी बचे 8 अन्य उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया। सूरत लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस के दो उम्मीदवारों ने नामांकन किया था। कांग्रेस ने निलेश कुम्भानी को उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने नामांकन के समय बहनोई जगदीश सावलिया, भांजे ध्रुविन धामेलिया और एक सहयोगी रमेश पोलरा को प्रस्तावक बनाया था। तीनों ने रविवार को चुनाव अधिकारी के सामने हलफमाना पेश कर कहा कि कुम्भानी के नामांकन पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। इसके बाद से तीनों गायब हो गये।
इंदौर (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश के इंदौर का मामला तो और भी दिलचस्प है। इंदौर से कांग्रेस ने अक्षय कांति को अपना उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने नामांकन भी भरा। लेकिन नाम वापसी के अंतिम दिन उन्होंने भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी के समर्थन में अपना नामांकन वापस ले लिया। इसके बाद वह भाजपा में भी शामिल हो गये। सूरत के बाद इंदौर ऐसी सीट है जिस पर कांग्रेस को अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ा।
भाजपा पर ‘खेला’ करने का आरोप
एक नहीं, तीन-तीन सीटों पर झटका झेलने के बाद कांग्रेस और इंडी गठबंधन भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि वह सीटें जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। यहां यह कहना उचित नहीं होगा कि भाजपा ने ऐसा जानबूझ कर और किसी रणनीति के तहत किया है। लेकिन जिन तीन सीटों पर भाजपा को सीधी जीत मिलती दिख रही है, उसका पिछला रिकॉर्ड भी देख लिया जाये तो शायद उस पर कुछ कहने के लिए विपक्ष के पास भी कुछ बच जाये। ये तीनों सीटें भाजपा ने इतने बड़े अंतर से जीती है सारा विपक्ष भी मिल कर उसके आधे के करीब भी नहीं पहुंच पाया है। आप भी जरा इन आंकड़ों को एक बार देख लें-
खजुराहो (लोकसभा चुनाव 2019)
- विष्णु दत्त शर्मा (बीजेपी) – कुल वोट 811,135 (65.02%)
- महारानी कविता सिंह नटीराजा (कांग्रेस) – कुल वोट 318,753 (25.55%)
- वीर सिंह पटेल (एसपी) – कुल वोट 40,077 (3.21%)
सूरत (लोकसभा चुनाव 2019)
- दर्शन विक्रम जर्दोष (बीजेपी) – कुल वोट 795,651 (75.21%)
- अशोक पटेल (कांग्रेस) – कुल वोट 247,421 (23.39%)
- एडवोकेट विजय शेंमारे (सीपीआई) – कुल वोट 5,735 0.54%
इंदौर (लोकसभा चुनाव 2019)
- शंकर लालवानी (बीजेपी) – कुल वोट 1,068,569 (65.8%)
- पंकज सांघवी (कांग्रेस) – कुल वोट 520,815 (32.07%)
- इंजीनियर दीपचंद अहीरवाल (बीएसपी) – कुल वोट 8,666 (0.53%)
यह हो सकता है कि पिछली बार जितने वोट भाजपा को इस बार न मिलें। लेकिन इन दिनों लोकसभा के पिछले आंकड़ों देखने के बाद यह लगता है कि भाजपा ने इन सीटों को जीतने के लिए ‘चीटिंग’ की होगी?
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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