राजधानी रांची के बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में विश्व आदिवासी दिवस पर दो दिनों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत हो गयी। कार्यक्रम की शुरुआत झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा मंच पर उपस्थित केन्द्रीय मंत्रियों और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर आगत अतिथियों ने रामदयाल मुंडा शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित झारखंडी भाषाओं की 12 पुस्तकों का विमोचन भी किया है। मुख्यमंत्री की उपस्थिति में राज्यपाल गंगवार ने राज्य के 257 लोगों को 2000 एकड़ के अधिक सामुदायिक वन भूमि पट्टा प्रदान किया। इस मौके पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को सम्बोधित भी किया।
आदिवासियों का विकास के लिए सरकार कटिबद्ध है – हेमंत सोरेन
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड वासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह आदिवासियों का एक बड़ा उत्सव है और इसे पूरे राज्य में मनाया जा रहा है। हेमंत सोरेन मे आदिवासी समाज के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धरती पर पहले आदिवासी समाज का उदय हुआ, उसके बाद दूसरे समाजों का सृजन हुआ है। आदिवासियों की मूल भावना ‘हमें जल-जंगल-जमीन की रक्षा करनी है’ का संदेश दुनिया को देना है।
हेमंत सोरेन ने झारखंड को वीरों की धरती बताते हुए, भगवान बिरसा, सिद्धू-कान्हू, टाना भगत, चांद-भैरव समेत अनेक वीर के नाम लेते हुए कहा कि इन महा पुरुषों ने आदिवासियों और उनकी संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी।
हेमंत सोरेन ने आदिवासियों की सामाजिक दशा का भी चित्रण किया। उन्होंने कहा कि सदियों से आदिवासियों का शोषण होता रहा है। चाहे आजादी से पहले की बात की जाये या आजादी के बाद हमेशा इस समाज के लोगों का शोषण किया गया। आदिवासियों के लिए अलग राज्य के गठन हुआ, यहां कई सरकारें आयी-गयीं, लेकिन इनकी दशा में सुधार नहीं हुआ। आज जो आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है वह आदिवासियों की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का प्रयास है। झारखंड राज्य गरीब नहीं है, खनिज सम्पदा से पूरी तरह सम्पन्न, लेकिन राज्य के लोग गरीब जरूर है। इसी को देखते हुए हमने इस राज्य के विकास के नये आयाम गढ़ने का प्रयास शुरू किया है। राज्य के हर वर्ग के लिए कई योजनाएं लाकर लोगों को राहत प्रदान करने का काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर आदिवासियों का विकास के लिए सरकार कटिबद्ध है
आदिवासी समाज का विश्व को योगदान सराहनीय – संतोष गंगवार
राज्यपाल संतोष गंगवार ने विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड की जनता को की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देकर अपने संबोधन की शुरुआत की। उन्होंने आदिवासी दिवस पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने आये कलाकारों, शिल्पकारों, चित्रकारों का अभिनन्दन किया। राज्यपाल ने झारखंड के महान सपूतो का भी स्मरण किया जिन्होंने आदिवासियों की अस्मिता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा, सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव, तेलंगा खड़िया जैसे वीर सपूतों को श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। ये आदिवासी समाज की ही नहीं, देश की पहचान हैं।
राज्यपाल ने कहा कि आदिवासी देश में 27 प्रतिशत हैं। इनका और विसमाजश्व को योगदान सराहनीय है। राज्यपाल ने आदिवासियों की कला-संस्कृति की सराहना करते हुए कहा कि आदिवासियों का पर्यावरणीय ज्ञान विश्व प्रसिद्ध है, इन्होंने देश को विविधितता प्रदान की है।
राज्यपाल के सम्बोधन में आदिवासियों की सामने आज जो चुनौतियां हैं, उन्हें महसूस किया गया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की जो समस्याएं हैं, उन पर काम करने की आवश्यकता है। आदिवासियों के लिए जो योजनाएं सरकारों द्वारा लायी जाती हैं, उन योगजानाओं का लाभ उन्हें समुचित तरीके से मिले। यह सुनिश्चित करना होगा।
राज्यपाल ने कहा कि उन्हें आदिवासियों की प्रकृति और उनकी सोच पर गर्व है। आदिवासी समाज में दहेज प्रथा जैसी कुरीति नहीं है। लेकिन उन्होंने इस समाज में डायन प्रथा जैसी कुरीति पर दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस कुप्रथा के प्रति इन्हें जागरूक करने की जरूरत है।
राज्यपाल गंगवार ने आदिवासी समाज के लिए शिक्षा के समुचित प्रबंध की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि इनके बच्चों को छात्रवृत्ति का लाभ मिलता रहे, यह सुनिश्चित करना होगा। तभी ये समाच में आगे बढ़ेंगे। राज्यपाल ने माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उदाहरण भी देते हुए कहा कि राष्ट्रपति महोदया अपने गांव की पहली शिक्षित महिला बनीं और आज पूरे समाज की प्रेरणा हैं। इसलिए अधिक से अधिक लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करें। राज्यपाल ने रामदयाल मुंडा शोध संस्थान द्वारा 12 आदिवासी भाषा की पुस्तकों के लोकार्पण पर भी हर्ष व्यक्त किया। साथ ही सामुदायिक वन पट्टा के वितरण किये जाने की भी सराहना की।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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