आदिवासियों को UCC से अलग रखने की है खास वजह, इसके खिलाफ उठ रही आवाज गलत!

केन्द्रीय गृहमंत्री ने रविवार को अपने झारखंड दौरे में इस बात का एक बार फिर ऐलान किया कि पूरे देश में यूसीसी (समान नागरिक संहिता) के लागू किया जायेगा। लेकिन साथ में उन्होंने कहा कि इससे देश के आदिवासी समुदाय को उससे बाहर रखा जायेगा। हालांकि इस बात का ऐलान समान नागरिक संहिता बिल के पास होने के समय से ही स्पष्ट है, लेकिन झारखंड विधानसभा चुनाव के चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने जब एक बार फिर इसका जिक्र किया तो राजनीतिक हलकों में गहमागहमी फैल गयी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो यूसीसी को झारखंड में लागू नहीं किये जाने को लेकर प्रतिक्रिया दी है, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने झारखंड में समान नागरिक संहिता से आदिवासियों को बाहर रखे जाने पर चिंता जताते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण की मांग की है। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री सुनिश्चित करें कि आदिवासियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है। क्या ऐसा करने से उनके अधिकारों और हितों की रक्षा की जायेगी?

आखिर आदिवासियों को यूसीसी से क्यों बाहर रखा गया है?

यूसीसी से आदिवासियों को बाहर रखने का निर्णय उनकी विशेष सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। यह निर्णय आदिवासी समुदायों की विशेष आवश्यकताओं और चुनौतियों को समझने का परिणाम है, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संरचना से जुड़ी हैं। यूसीसी के कार्यान्वयन में आदिवासियों को शामिल नहीं करने से उनकी स्वायत्तता और आत्मनिर्णय की क्षमता को बनाए रखने में मदद मिलेगी।

अमित शाह के झारखंड में दिये गये बयान के बाद जब इस संदर्भ में पत्रकारों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से पूछा तब उन्होंने कहा, “झारखंड में आदिवासियों की आबादी में लगातार गिरावट आई है। 2011 के जनगणना में 10% की गिरावट आदिवासियों की आबादी में आई देखी गई। अगर हम संथाल परगना में देखते हैं तो वहां 16% की गिरावट आई है, ये चिंता का विषय है। इसलिए यूसीसी में आदिवासियों को उस दायरे से बाहर रखा गया है। हमें उनको संरक्षित भी करना है और विकसित भी करना है।”

ऐसा ही कुछ पूर्व केन्द्रीय मंत्री और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी कही। उन्होंने कहा- “यह गलत धारणा बनाने की कोशिश की गई है कि आदिवासियों को यूसीसी से नुकसान होगा जबकि साफ तौर से कहा गया है कि आदिवासी यूसीसी से प्रभावित नहीं होंगे। उनके अधिकारों की रक्षा की जाएगी. उनके नियम और कानून, उनकी संवैधानिक व्यवस्था, उनके प्रथागत (चले आ रहे कानून), सब कुछ सुरक्षित रहेंगे।”

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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