पूरे देश में इस समय गर्मी का सितम चल रहा है। झारखंड-बिहार में भी कहीं-कहीं पारा 44 डिग्री को पार कर गया है। ऐसे में लोग बड़ी बेसब्री से मॉनसून के आने का इन्तजार कर रहे हैं। ऐसे में केन्द्रीय मौसम विभाग ने मॉनसून की ताजा जानकारी दी है। इस जानकारी के अनुसार ला लीना के असर से जून से लेकर सितम्बर तक अच्छी बारिश होने की सम्भावना है। देश में चूंकि केरल में मॉनसून ब्रेक करता है, इसलिए सबकी निगाहें इस बात पर हर साल टिकी रहती हैं कि केरल में मॉनसून कर ब्रेक करेगा। मौसम विभाग हालांकि केरल में मॉनसून ब्रेक होने की की तारीख तो नहीं बतायी है, लेकिन इतना जरूर कहा है कि मॉनसून की बारिश मई के महीने से शुरू हो जायेगी।
दक्षिण एशिया के मौसम पर नजर रखने वाला ‘साउथ एशियन क्लाइमेट आउटलुक फोरम’ (एसएएससीओएफ) ने भी 2024 के मॉनसून का पूर्वानुमान जारी किया है। एसएएससीओएफ के अनुसार दक्षिण एशिया के उत्तरी, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है। इसका कारण उसने अल नीनो का प्रभाव बताया है।
फोरम के अनुसार, वर्तमान में अल नीनो की स्थितियां बनी हुई हैं। जिससे चार महीने के मॉनसून सीजन के पहले दो महीने यानी जून-जुलाई के दौरान अल नीनो की स्थिति तटस्थ रहेगी। उसके बाद के दो महीने यानी अगस्त-सितंबर के दौरान ला नीना की अनुकूल स्थिति बनेगी जिससे सामान्य वर्षा होगी।
बता दें कि भारत मौसम विभाग देश में पहले ही सामान्य से अधिक बारिश होने का पूर्वानुमान जता चुका है। मौसम विभाग के अनुसार, भारत में दीर्घकालिक औसत (एलपीए) की 106 फीसदी बारिश होगी। आईएमडी ने यह भी कहा था कि चार महीने के सीजन के बाद के दो महीने (अगस्त-सितंबर) में अधिक वर्षा होगी, क्योंकि तब ला नीना की अनुकूल स्थितियां बनेंगी।
क्या है अल नीनो व ला नीना और क्या है इसका असर?
अल नीनो एवं ला नीना एक जटिल मौसम पैटर्न हैं। इसका सम्बंध प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के समुद्र के सतह के तापमान से जुड़ा है जो समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों को दुनिया भर के मौसम पर प्रभाव डालता है। अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला नीना के कारण ठंडा। दोनों का असर आमतौर पर 9-12 महीने तक रहता है।
ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र में समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो बदलाव आता है उस समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव दिखता है और बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देता है। यह स्थिति हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में दिखती है।
वहीं, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ला लीना की स्थिति पैदा होती है। इसके असर से समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है। इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना का चक्रवात पर भी असर होता है। इसके असर से भारत में भयंकर ठंड पड़ती है और बारिश भी ठीक-ठाक होती है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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