न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
बीते दिनों के कम्युनिस्ट नेता और JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का कांग्रेस में शामिल होना शायद राजद को नहीं भाया है। हालांकि इस मामले पर राजद ने चुप रहने का ही फैसला किया है, लेकिन उसकी ‘भड़ास’ निकल ही गयी है। वैसे कन्हैया के पार्टी में शामिल होना तो कई कांग्रेसियों को भी नहीं भा रहा है। कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने पर मनीष तिवारी ने अपनी ही पार्टी नेताओं की जिस तरह क्लास लगायी है, वह किसी से छुपी नहीं है।
बता दें, कन्हैया कुमार ने मंगलवार को कांग्रेस का हाथ यह कह कर थामा था कि, ‘मुझे या देश के करोड़ों युवाओं को लगने लगा है कि अगर कांग्रेस नहीं बची तो देश नहीं बचेगा। इसलिए कांग्रेस ज्वाइन कर रहा हूं।‘
लेकिन लग रहा है कि कांग्रेस के सहयोगी राजद को कांग्रेस का यह निर्णय नहीं भा रहा है। राजद ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है और जिस तरह से उसने अपने सभी प्रवक्ताओं और नेताओं को कोई प्रतिक्रिया नहीं देने का आदेश जारी किया है, वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ‘बात’ चुभ गयी है। ऐसा शायद इसलिए भी कि सहयोगी दलों में एक दूसरे भी भावना का ख्याल रखा जाता है, लेकिन राजद को लगता है कि यहां उसकी उपेक्षा हो गयी है। इसलिए उसने ‘चुप’ रहने का फैसला किया है। लेकिन उसके मुंह बंद करते-करते ‘दिल की बात’ निकल ही गयी। आरजेडी का फरमान उसके नेताओं तक पहुंचता, तब तक ‘तीर’ निकल चुका था। क्योंकि तब तक कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर आरजेडी के वरिष्ठ नेता और विधायक भाई वीरेंद्र से सवाल पूछ लिया गया था। इस पर उनका जवाब था- ‘कौन है कन्हैया कुमार? मैं इन्हें नहीं जानता’।
भले ही यह माना जा रहा है कि महागठबंधन में अपने सहयोगी दल कांग्रेस में कन्हैया का शामिल होने का मतलब एक अच्छे वक्ता का गठबंधन में शामिल होना है। इस लिहाज से कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने से राजद को खुश होना चाहिए था, लेकिन भाई वीरेंद्र के जवाब से ऐसा लगता नहीं।
राजद के ‘नाखुश’ होने की वजह?
भले ही कन्हैया कुमार को लेकर राजद ने कोई प्रतिक्रिया नहीं देने का मन बनाया है, लेकिन भाई वीरेन्द्र का बयान इशारा कर रहा है कि राजद खुश नहीं है। इसका कारण क्या है इसको जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। याद करना होगा पिछला विधानसभा चुनाव। इस विधानसभा चुनाव के वक्त कन्हैया कुमार ने कांग्रेस और राजद के सामने टिकट के लिए गिड़गिड़ाये थे। लेकिन दोनों ही पार्टियों ने कन्हैया कुमार को टिकट देने से इनकार कर दिया था। कारण था कन्हैया का एक अच्छा वक्ता होना। कन्हैया की वाक् क्षमता के आगे राजद के युवा नेता तेजस्वी यादव टिक सकते थे, राहुल गांधी की तो खैर बात ही छोड़ दीजिये। उस समय इन दोनों ही नेताओं को अपनी छवि धूमिल होने की चिंता थी। बिहार के ‘तेजस्वी’ नेता से कोई आगे निकल जाये, यह लालू के लाल को कहां बर्दाश्त था।
अपने सामने अपनी पार्टी में किसी युवा नेता के उभर जाने का भी डर था। यही वजह थी कि कन्हैया कुमार को न तो राजद से टिकट मिला और न ही कांग्रेस से। अंत में बेगूसराय से सीपीआई के टिकट से चुनाव लड़ना पड़ा था। विवशता में ही सही, राहुल गांधी ने तो कन्हैया को अपने पाले में कर लिया है। मगर सहयोगी पार्टी में कन्हैया कुमार के शामिल होने से राजद के तेजस्वी यादव को शायद टेंशन हो गयी है।
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