Supreme Court : ‘अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।’ इन शब्दों में सुप्रीम कोर्ट की निराशा साफ देखी जा सकती है। राजनीतिक के अपराधीकरण मुद्दे पर राजनीतिक दलों की ‘नीयत’ पर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रसन्नता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट का यह मानना है कि राजनीतिक दल ही राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने नहीं होने देना चाहते हैं।
बिहार विधानसभा से जुड़े मामले की हो रही थी सुनवाई
13 फरवरी, 2020 के अपने निर्देशों का अनुपालन न करने के लिए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा और कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए की।
चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन न करने की बारीकियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने आंकड़ों का भी जिक्र किया और कहा कि हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।
निर्देशों का पालन नहीं करने से शीर्ष अदालत नाराज
राजनीति के अपराधीकरण के निर्देशों का पालन नहीं होने की सुनवाई के दौरान दी जा रही दलीलों से भी सुप्रीम कोर्ट नाराज था। इसी नाराजगी में पीठ ने कहा, ‘अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं।’ तब कांग्रेस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से अनुरोध किया कि उसे चीजों को ठीक करने के लिए विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल देना चाहिए।
पीठ ने कहा कि वह मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने के सुझाव पर विचार कर सकती है। चुनाव आयोग ने पीठ को बताया कि कि राकांपा और कम्युनिस्ट पार्टी ने बिहार चुनाव के दौरान शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन किया है।
बिहार की नई विधानसभा में 70% विधायकों पर आपराधिक मुकदमे
एडीआर ने 243 में से 241 विधायकों के हलफनामों का जो आंकलन किया है, उसके आधार पर उसने बताया कि , हाल में ही गठित बिहार की विधानसभा के तकरीबन 70 प्रतिशत सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं। हत्या और हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के प्रति हिंसा आदि के मुकदमें इन माननीयों पर दर्ज हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के आंकड़े बताते हैं कि क़रीब 68 प्रतिशत विधायकों यानी 163 पर आपराधिक गतिविधियों के आरोप हैं। ये आंकड़े पिछली विधान सभा के अनुपात से 10 प्रतिशत अधिक हैं। एडीआर ने 243 में से 241 विधायकों का विश्लेषण किया है, क्योंकि चुनाव आयोग में दाख़िल उनमें से दो के हलफनामे स्पष्ट नहीं हैं.
आरोपी 163 विधायकों में से, 123 विधायकों के खिलाफ संगीन अपराध के मुकदमे दर्ज हैं। 19 विधायकों पर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप हैं, जबकि 31 विधायक पर हत्या के प्रयास के आरोप हैं। आठ विधायकों के खिलाफ मामले महिलाओं के प्रति हिंसा से जुड़े हैं। सबसे बड़ी बात कि बिहार विधानसभा के इन आरोपी माननीयों से कोई भी दल अछूता नहीं है। आरजेडी के 74 विधायकों में से 54 यानी करीब 73 प्रतिशत कथित रूप से अपराधी विधायक हैं, जबकि बीजेपी के 73 में से 47 यानी 64 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
राजनीति के अपराधीकरण की वजह
देश की राजनीति का स्वरूप इतना विकृत हो चुका है कि आज कोई भी चुनाव बना धन बल और अपराधियों के प्रभाव के बिना नहीं जीता जा सकता है। इन्हीं ‘पॉवर’ के बल पर राजनीतिक दल वोटों को प्रभावित करते हैं। देश की राजनीतिक में अपराधियों का चुन कर आने में जाति और धर्म जैसे कारकों का भी बड़ा योगदान होता है। यह कारक आपराधिक चरित्र वाले उम्मीदवार को चुनाव जीत जाने में मदद करता है।
चूंकि आपराधिक चरित्र वाले उम्मीदवार अपने राजनीतिक दल के लिए फंड इकट्टा करने में बड़ा योगदान करता है, इसलिए राजनीतिक दल भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार पर विशेष रूप से निर्भर हो जाते हैं।
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में फैसले आने में देरी भी राजनीति के अपराधीकरण को प्रोत्साहित करती है। अदालतों में आपराधिक मामले को निपटाने में वर्षों लग जाते हैं। जब तक आपराधिक चरित्र वाले उम्मीदवार को अपराध सिद्ध होता है तब तक वह सत्ता सुख का पूरा लाभ ले चुका होता है।
निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेवार है। चुनाव आयोग ने नामांकन के समय उम्मीदवारों के संपत्ति, अदालतों में लंबित मामलों, सजा आदि का खुलासा करने का प्रावधान तो किया है। किंतु आयोग का यह कदम अपराध और राजनीति के गठजोड़ को तोड़ने में कारगर नहीं हो पाया है।
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