भारतीय न्याय व्यवस्था में न्यायाधीशों को ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ करने की परम्परा बन गयी है। यदा-कदा कतिपय जज इस पर आपत्ति जताते रहे हैं। एक नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट में ऐसा माजरा देखने को मिला जब एक सुनवाई के दौरान एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा बार-बार ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप्स’ कहे जाने पर न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने आपत्ति जताई। वह तो इतने नाराज हो गये कि उन्होंने कह डाला, अगर आप मुझे ‘माई लॉर्ड्स’ कहना बंद कर देंगे तो मैं आपको अपना आधा वेतन दे दूंगा।
भारतीय न्याय व्यवसथा में, भले ही उसे औपनिवेशिक युग का अवशेष या गुलामी का प्रतीक माना जाता हो, लेकिन न्यायाधीशों को ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ पर कोई विशेष आपत्ति नहीं जतायी जाती। हालांकि भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने 2006 में एक प्रस्ताव जरूर पारित किया था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि कोई भी वकील न्यायाधीशों को ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित नहीं करेगा। पर यह परम्परा है कि टूटती ही नहीं है!
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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