सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह संबंधी ब्रिटिश काल के कानून के दुरुपयोग पर गुरुवार को चिंता व्यक्त की और इसके प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की याचिका समेत याचिकाओं के समूह पर केंद्र से जवाब मांगा। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता ‘‘कानून का दुरुपयोग’’ है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।
न्यायालय ने कहा कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। इस बीच, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाए जा सकते हैं।
पीठ मेजर-जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है।
जानें क्या है राजद्रोह कानून
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए में राजद्रोह की परिभाषा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।