गैरेज से NEET तक का सफर: उत्कल मिलन सामाड की उड़ान, जिला प्राशासन कि पहल ने बदली ज़िंदगी की दिशा.
उपायुक्त पश्चिमी सिंहभूम के मार्गदर्शन मे जिला प्रशासन द्वारा संचालित ‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’ कार्यक्रम के अंतर्गत मारवाड़ी +2 हाई स्कूल, चक्रधरपुर के छात्र उत्कल मिलन सामाड ने NEET परीक्षा में उपलब्धि हासिल कि है। इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब सही समय पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, तकनीकी संसाधन और व्यक्तिगत मार्गदर्शन छात्रों को उपलब्ध कराया जाता है, तो सरकारी स्कूलों के बच्चे भी देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सरकारी स्कूल के बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी देश कि बेहतरीन फ़ैकल्टियों द्वारा निःशुल्क कराई जाती है।
इसी कार्यक्रम का हिस्सा रहे मारवाड़ी +2 हाई स्कूल, चक्रधरपुर के छात्र उत्कल मिलन सामाड ने NEET परीक्षा में अपने पहले ही प्रयास मे बाजी मार कर अपना और अपने परिवार का डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया है । कभी गैरेज में काम करने वाले उत्कल के लिए यह सफर आसान नहीं था — आर्थिक चुनौतियों और सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
चक्रधरपुर के एक मोहल्ले में रहने वाला उत्कल मिलन सामाड कभी स्कूल के बाद सीधे एक गैरेज चला जाता था। वहीं पर बाइक रिपेयरिंग में हाथ बंटाता, कुछ पैसे कमाता और फिर घर लौटता। पढ़ाई उसके लिए ज़रूरी तो थी, लेकिन हालात ने उसे बहुत जल्दी समझा दिया था कि ज़िंदगी में सिर्फ किताबें काफी नहीं होतीं—पैसे भी चाहिए।
गांव का लड़का, सीमित साधन, आर्थिक तंगी और मेडिकल की पढ़ाई… ये सब एक ही वाक्य में सुनकर भी नामुमकिन-सा लगता है। लेकिन यही नामुमकिन, उत्कल ने मुमकिन कर दिखाया। और इसकी शुरुआत हुई जिला प्रशासन की एक पहल से—‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’।
इस कार्यक्रम के ज़रिए उत्कल को मेडिकल की तैयारी का ऐसा मौका मिला, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अब पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रही—हर विषय के लिए विशेषज्ञ शिक्षक थे, जो हर दिन घंटों क्लास लेते, समझाते, सवालों का जवाब देते। रोज़ का टाइमटेबल तय था, हर हफ्ते टेस्ट होते थे, और हर गलती पर फीडबैक भी मिलता था। जो समझ नहीं आता, वो तुरंत पूछा जाता, और उसी वक़्त हल भी मिल जाता। तैयारी अब अपने दम पर नहीं, एक पूरी टीम के साथ हो रही थी—जो उसे लगातार मोटिवेट करती थी, रास्ता दिखाती थी। यही गहरी और नियमित तैयारी थी, जिसने उत्कल को उस मुकाम तक पहुँचाया, जहाँ अब वो अपने सपने को सच होते देख रहा है।
उत्कल कहते हैं, “ मुझे NEET परीक्षा के बारे में ठीक से पता भी नहीं था। बस इतना जानता था कि मुझे डॉक्टर बनना है। कहीं सुन रखा था कि डॉक्टर बनने के लिए बहुत बड़ी परीक्षा देनी पड़ती है, लेकिन क्या होती है, कैसे होती है—इन सबका अंदाज़ा नहीं था। गैरेज में काम करते हुए सिर्फ इतना सोचता था कि काश ज़िंदगी कुछ और होती। जब ‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’ के ज़रिए कोचिंग मिली, तब पहली बार समझ में आया कि ये सपना कैसे पूरा हो सकता है। धीरे-धीरे पढ़ाई शुरू हुई, और हर दिन के साथ उम्मीद भी बढ़ती गयी। अब लग रहा है कि जो सपना बस सोचते थे दिल में, वो सच में पूरा होने लगा है।”
उत्कल के पिता बीरेंद्र सामाड, जो खुद भी मेहनत-मजदूरी कर अपने परिवार को चलाते हैं, आज भी भावुक होकर कहते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका बेटा इतना आगे बढ़ेगा। गांव के सरकारी स्कूल से पढ़कर डॉक्टर बनने जैसा सपना देखना भी उनके लिए कभी मुमकिन नहीं लगता था। लेकिन अब वह सपना हकीकत बन गया है और इसका श्रेय वे सिर्फ उत्कल की मेहनत को नहीं, बल्कि उस मौके को भी देते हैं जो उन्हें ‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’ के ज़रिए मिला।
उत्कल की सफलता पर जिला के उपायुक्त चंदन कुमार ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि “यह सिर्फ एक छात्र की नहीं, बल्कि जिले की शिक्षा नीति की भी जीत है। अगर बच्चों को सही समय पर जरूरी संसाधन और मार्गदर्शन मिले, तो वे किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं।” ” जिला शिक्षा पदाधिकारी ने उत्कल को बधाई देते हुए कहा,‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’ के तहत जो सहयोग और मंच बच्चों को मिला है, वो अब असर दिखा रहा है। उत्कल जैसे छात्र ही इस योजना की सच्ची पहचान हैं।”
उप विकास आयुक्त ने कहा, “उत्कल की सफलता इस बात का प्रमाण है कि हमारी पहल सही दिशा में असर दिखा रही है। हम फील्ड विज़िट्स पर देखते हैं कि इन बच्चों में काफी प्रतिभा है—उन्हें बस सही मौका और मार्गदर्शन चाहिए। हमारा उद्देश्य यही है कि हर बच्चे को न केवल राज्य स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा अवसर मिले। यही सोच अब ज़मीनी हकीकत बनती नज़र आ रही है।”
जिला शिक्षा पदाधिकारी ने उत्कल को बधाई देते हुए कहा,‘सम्पूर्ण शिक्षा कवच’ के तहत जो सहयोग और मंच बच्चों को मिला है, वो अब असर दिखा रहा है। उत्कल जैसे छात्र ही इस योजना की सच्ची पहचान हैं।”
ये योजना सिर्फ कोचिंग तक सीमित नहीं है। बच्चों को 24×7 डिजिटल सपोर्ट, लाइव क्लासेस, टेस्ट प्रैक्टिस, काउंसलिंग और ज़रूरत पड़ने पर मानसिक सहयोग भी मिलता है। यानी पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें सही माहौल भी दिया जा रहा है जिसमें वे खुद को बेहतर बना सकें।
उत्कल अब सिर्फ एक छात्र नहीं है—वो एक मिसाल है। एक ऐसी कहानी जो बताती है कि अगर बच्चे को सही वक्त पर मौका, गाइडेंस और हौसला मिल जाए, तो हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, वो अपनी उड़ान खुद तय कर सकता है।
गैरेज से उठकर मेडिकल कॉलेज के दरवाज़े तक पहुंचने वाला उत्कल, अब उन हज़ारों बच्चों के लिए उम्मीद की एक रोशनी है जो सोचते हैं कि “हमारे लिए नहीं हो पाएगा।” उसकी कहानी कहती है—हां, हो सकता है। बस एक मौका चाहिए