बिहार की राजनीतिक पल-पल करवट ले रही है। दुश्मन दोस्त लगने लगे हैं और दोस्त दुश्मन। कल तक जो भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी नीतीश कुमार को लेकर अपने तरकश के तीर खाली कर रहे थे, आज उनकी तारीफ कर रहे हैं। जदयू के जो नेता भाजपा पर हमलावर थे, या तो वे चुप्पी साधे हुए हैं या फिर बहुत सधे अंदाज में बोल रहे हैं। जो राजद कुछ दिन पहले नीतीश कुमार की तारीफें करते नहीं थक रहा था, उन्हें इंडी गठबंधन का सबसे अच्छा नेता बता रहा था, उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तक बता रहा था, आज वही नीतीश उसकी आंखों में खटकने लगे हैं।
आज ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी रेहिणी यादव ने एक पोस्ट कर इशारों में नीतीश कुमार पर हमला कर दिया था। हालांकि बाद में उन्होंने यह पोस्ट हटा लिया। हालांकि तब तक तीर कमान से निकल चुका था। खबर है कि नीतीश कुमार रोहिणी के इस पोस्ट पर खासे नाराज हैं।
नीतीश कुमार नाराज क्यों न हों। गठबंधन में रहते हुए भी तो राजद ने नीतीश के भले से पहले अपना फायदा ही सोचा। राजद प्रमुख नीतीश कुमार को इंडी गठबंधन का संयोजक क्यों बनवाना चाहते थे, इसलिए ना कि नीतीश बिहार से दूर हो जायें और उनके बेटे यानी डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव प्रोमोट होकर सीएम बन जायें।
नीतीश कुमार की नाराजगी की वजह तलाशनी है तो थोड़ा पीछे जाना होगा। इंडी गठबंधन की जो आखिरी वर्चुअल बैठक हुई थी, उसमें संयोजक का नाम प्रस्तावित होना था, नाम प्रस्तावित किया भी गया, लेकिन उसके पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो चुभती हुई बात कही, उससे नीतीश कुमार ने संयोजक बनना स्वीकार नहीं किया। राहुल ने कहा कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव नहीं चाहते हैं कि नीतीश कुमार गठबंधन के संयोजक बने। इसे नीतीश कुमार ने अपने आत्मसम्मान पर ले लिया।
यहां एक बात और बतानी जरूरी है कि एक नीतीश कुमार और राहुल गांधी का एक ऑडिया वायरल हुआ है जिसमें राहुल गांधी अपने कांग्रेसी नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करने का आग्रह (आदेश) कर रहे हैं। जिस पर नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया अच्छी नहीं रही है।
सही देखा जाये तो नीतीश कुमार का नाराजगी की शुरुआत इंडी-गठबंधन की पहली-दूसरी बैठक से ही शुरू हो गयी थी। इन बैठकों में गठबंधन के रवैये से कई बार उनके नाराज होकर उठ कर चले जाने की खबरें आ चुकी हैं। लेकिन आखिरी बैठक में संयोजक पद को लेकर हुए अपमान और कांग्रेस के द्वारा सीट शेयरिंग को लेकर दिखाये गये रवैये ने उन्हें ‘कुछ’ सोचने को विवश कर दिया। इसी बीच एक कार्यक्रम के दौरान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक सवाल के जवाब में यह कह कर ‘अगर नीतीश वापस आते हैं तो उस पर विचार किया जा सकता है’, नीतीश के मानों हाथ में बटेर लग गयी हो। इसके बाद हालांकि उन्होंने खुल कर कहा तो कुछ नहीं, लेकिन जितना कुछ कहा, वही फिर कुछ होने के संकेत देने लगा है।
बता दें कि नीतीश कुमार ने क्या-क्या कहा। नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने के बहाने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खुल कर तारीफ कर डाली। इसी क्रम में लालू के परिवार वाद पर जमकर हमला बोल दिया। नीतीश कुमार ने कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के बिहार से गुजरने के दौरान उसमें शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। गुरुवार को जब कैबिनेट की बैठक में शामिल हुए तब शायद ऐसा पहली बार हुआ की किसी कैबिनेट में किसी भी एजेंडे पर मुहर नहीं लगी। कैबिनेट की बैठक में नीतीश ने कुछ कहा भी नहीं। यह भी उनके बहुत कुछ कहने के बराबर है। दो दिनों पहले जब नीतीश कुमार राजभवन राज्यपाल से मिलने पहुंचे थे तब भी बाहर आकर किसी से कोई बात नहीं कर बहुत कुछ इशारा कर दिया।
चूंकि यह राजनीति है और राजनीति में कब हवा किस ओर बह जायेगी कहना मुश्किल है, इसलिए नीतीश के अगले कदम का इन्तजार करना होगा। अभी की ताजा खबर यह है कि बिहार प्रदेश अघ्यक्ष सम्राट चौधरी और भाजपा नेता अश्विनी चौबे दिल्ली गये हैं। अब इसका भी कोई राजनीतिक मतलब निकाला जा सकता है। ऊपर से कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार भी आने वाले हैं।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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