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भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का ही नाम है ज्योति पिंड। पुराणों में उल्लेखित तथ्यों के अनुसार, ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिवपुराण में वर्णित है कि ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। इसके अलावा हमारे पुराणों के अनुसार जहां-जहां भगवान शिवजी स्वयं प्रकट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।
ज्योर्लिंग स्तोत्र में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन
शिव की महिमा अपरम्पार है, इसलिए ज्योतिर्लिंगों की महिमा भी अपम्पार है। देश के कोने-कोने में स्थापित हैं ज्योतिर्लिंग। हर ज्योतिर्लिंग का अपना महत्व और उसकी अपनी महिमा है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन एक जगह अगर कहीं मिलती है तो वह है- ज्योतिर्लिंग स्तोत्र। ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में कुल 13 श्लोक हैं। इन 13 श्लोकों में 12 ज्योतिर्लिंगों की किस ज्योतिर्लिंग की क्या महिमा है, उसका वर्णन है। 13वें श्लोक में इस स्तोत्र के पाठ का लाभ बताया गया है। तो आइये द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में वर्णित ज्योतिर्लिंगों की महिमा को जानें।
श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
श्रीसोमनाथ 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान है। सर्वप्रथम इसका निर्माण चंद्रदेव ने करवाया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं से भालुका तीर्थ में देह त्यागकर वैकुंठ गमन किया था। यहां की त्रिवेणी में स्नान का विशेष महत्व है। यहां पर तीन पवित्र नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम है।
श्लोक:
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
इसका अर्थ है – जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं, चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरण में मैं जाता हूं।
श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश पर्वत कहा जाता है। माता पार्वती का नाम ‘मल्लिका’ है और भगवान शिव को ‘अर्जुन’ कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से वे श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से यहां निवास करते है।
श्लोक:
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।
इसका अर्थ है- जो ऊंचाई के आदर्श भूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊंचे श्रीशैल के शिखर पर, जहां देवताओं का अत्यन्त समागम होता रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार-सागरसे पार कराने के लिये पुल के समान हैं, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूं।
श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के उज्जैन में विराजमान हैं महाकालेश्वर। यहां भगवान महाकाल को उज्जैन का राजा कहा जाता है। यहां की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। यहां गुरु सांदीपनी के आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण व बलराम विद्या प्राप्त करने हेतु आये थे।
श्लोक:
अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
इसका अर्थ है- संतजनों को मोक्ष देने के लिये जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेवजी को मैं अकाल मृत्यु से बचने के लिये नमस्कार करता हूं।
श्रीओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर, मन्धाता नाम के आइलैंड पर स्थित है। यहां नर्मदा ॐ के आकार में बहती है, इसलिए इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। यह अन्य ज्योतिर्लिंगों से इसलिए अलग है, क्योंकि यहां भगवान शंकर दो रूपों में विराजमान हैं, एक ओंकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर। दो ज्योतिर्लिंग के रूप में होने पर भी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को एक ही गिना जाता है।
श्लोक:
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे।
इसका अर्थ है- जो सत्पुरुषों को संसार-सागर से पार उतारने के लिये कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन करता हूं।
श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में अवस्थित है। वैद्यनाथ जोतिर्लिंग होने के कारण इस स्थान को “देवघर” अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथधाम में माता सती का हृदय गिरा था इसलिए यह स्थान एक शक्तिपीठ भी है। भगवान वैद्यनाथ के दर्शन करने से भक्तो की मनोकामनाएं पूरी करते हैं, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को ‘कामना लिंग’ भी कहते हैं।
श्लोक:
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।
इसका अर्थ है- जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं, देवता और असुर जिनके चरण कमलों की आराधना करते हैं, उन श्रीवैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के जामनगर जिले के द्वारका धाम से लगभग 18 किमी दूर स्थापित है। यहां श्रीद्वारकाधीश भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते थे। भगवान शिव के सहस्र नामों में एक नाम नागेश्वर भी है। इसलिए यहां भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाये और माता पार्वती ‘नागेश्वरी’।
श्लोक:
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये।
इसका अर्थ है- जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ की मैं शरण में जाता हूं।
श्रीकेदारनाथ ज्योतिर्लिंग
उत्तरांचल में केदारनाथ स्थित केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक और चार धामों में से एक और पंच केदार में से एक है। भगवान शिव जी ने केदार क्षेत्र को कैलाश जितना महत्व दिया है। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है। और बाहर नंदी भगवान विराजमान हैं।
श्लोक:
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे।।
इसका अर्थ है- जो महागिरि हिमालय के पास केदार शृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरों द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूं।
श्रीत्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में पंचवटी से लगभग अठारह मील की दूरी पर गोदावरी नदी कें किनारे स्थित है। अत्यंत प्राचीन त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। इन तीन शिवलिंग को ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता हैं। ये शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए है, यानी इसे किसी ने स्थापित नहीं किया था। गौतम ऋषि और गोदावरी नदी ने भगवान शिव से यहां निवास करने के लिए प्रार्थना की थी इसलिए यहां भगवान शिव यहां त्रयंबकेश्वर के रूप में निवास करते है।
श्लोक:
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे।।
इसका अर्थ है- जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्यपर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्रीत्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।
श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग
तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग चार धामों में से एक धाम भी है। रामेश्वर का अर्थ होता है भगवान राम के ईश्वर। रामेश्वर शिवलिंग कोई सामान्य शिवलिंग नही है। इसे सीता माता ने खुद अपने हाथों से बनाया था। भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने इस शिवलिंग की स्थापना की और पूजन किया।
श्लोक:
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।
जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम परअनेक बाणों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं, उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे प्रणाम करता हूं।
श्रीभीमांशंकर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र में स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, पुणे से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग सह्याद्रि नामक पर्वत की हरि-भरी वादियों में स्थित। भीमा नदी के उद्गम स्थल पर शिराधन गांव में स्थित इस मंदिर का शिवलिंग, मोटा होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग अमोघ है, इसके दर्शन का फल सभी मनोकामनाए पूर्ण करता है।
श्लोक:
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि।।
इसका अर्थ है- जो डाकिनी और शाकिनीवृन्दमें प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्तहितकारी भगवान् भीमशंकर को मैं प्रणाम करता हूं।
श्रीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के वाराणसी के काशी में स्थित है। कहा जाता है है काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है। ज्योतिर्लिंग के दायें भाग में मां पार्वती और बाएं भाग में भगवान भोलेनाथ सुन्दर रूप में विराजमान है। गंगा नदी के किनारे बसे काशी को मुक्ति का धाम कहा गया है।
श्लोक:
सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।
इसका अर्थ है- जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूं।
श्रीघुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट दौलताबाद के पास स्थित है। यह घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध है। शिवभक्त घुश्मा की भक्ति के कारण प्रकट होने के कारण यह घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए।
श्लोक:
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये।।
इसका अर्थ है- जो इलापुर के सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ का महत्व
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च।।
इसका अर्थ है- यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे, तो इनके दर्शन से होने वाले फल को प्राप्त कर सकता है।
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