Shibu Soren Biography: झारखंड को 2000 में बिहार से अलग करवाने में और राज्य की खनिज संपदा और संस्कृति के संरक्षण में कई आन्दोलनकारियों का सहयोग रहा है, उसी में से दिशोम गुरु शिबू सोरेन भी हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी झारखंड की अस्मिता और इसके सांस्कृतिक पहलुओं के संरक्षण के लिए मुखर होकर अपनी बातों को रखा है. मंगलवार को हुई झारखंड कैबिनेट की बैठक में कई प्रस्तावों पर मुहर लगी जिसमें से एक अहम् प्रस्ताव ये भी रहा की अब झारखंड के सरकारी स्कूलों में शिबू सोरेन के जीवन पर आधारित तीन पुस्तकों को पढ़ाया जायेगा. तीनों पुस्तकें प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई हैं और प्रभात खबर के प्रधान संपादक अनुज कुमार सिन्हा द्वारा लिखी गई हैं. बच्चे झारखंड आंदोलन के नायक शिबू सोरेन के संघर्ष के बारे में जानेंगे.
सुनो बच्चों, वीर आदिवासी योद्धा शिबू सोरेन (गुरुजी) की कहानी नामक पुस्तक राज्य सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में रखी जायेगी. इस बीच, मध्य और उच्च विद्यालयों में वितरण के लिए डिचोम गुरु शिबू सोरेन और आदिवासी नायक शिबू सोरेन नामक किताबें खरीदी जाएंगी. तीनों पुस्तकें प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई हैं और प्रभात खबर के प्रधान संपादक अनुज कुमार सिन्हा द्वारा लिखी गई हैं. बच्चे झारखंड आंदोलन के नायक शिबू सोरेन के संघर्ष के बारे में जानेंगे.
झारखंड के 23 साल के इतिहास में शिबू सोरेन का योगदान
झारखंड अपनी 22वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इन 22 वर्षों में राज्य में कई उतार-चढ़ाव आये। पहले 14 साल तक झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता रही, जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई. लेकिन 2014 के बाद झारखंड में स्थिर सरकार बनने लगी. झारखंड आंदोलन हो या राज्य की राजनीति, सबसे बड़ा नाम शिबू सोरेन का ही है. राज्य के लिए उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण था.
दिशोम गुरु के जिक्र के बिना झारखंड की चर्चा कवी पूरी नहीं हो सकती है. शिबू सोरेन आदिवासियों के बड़े नेता माने जाते हैं. शिबू ने पहले सूदखोरी और शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलाया, फिर झारखंड को अलग राज्य बनाने के लंबे संघर्ष में भी शामिल हुए. गुरूजी तीन बार मुख्यमंत्री बने और केन्द्र में भी मंत्री बने. वह आज भी राज्यसभा के सदस्य हैं और मौजूदा झारखण्ड में राज्य के सरकार की गठित महागठबंधन के अध्यक्ष हैं. ये सरकार आज भी राज्य में काम कर रही है.
शिबू पहली बार 1977 में लोकसभा के लिये चुनाव में खड़े हुए लेकिन हार मिली. 1980 में वे लोक सभा चुनाव जीते. इसके बाद क्रमश: 1986, 1989, 1991, 1996 में भी चुनाव जीते.10 अप्रैल 2002 से 2 जून 2002 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। 2004 में वे दुमका से लोकसभा के लिये चुने गये. सन 2005 में झारखंड विधानसभा चुनावों के पश्चात वे विवादस्पद तरीके से झारखंड के मुख्यमंत्री बने, परंतु बहुमत साबित न कर सकने के कारण कुछ दिनों के पश्चात ही उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.
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