JDU के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव (Sharad Yadav) का निधन हो गया है. इस खबर की पुष्टि उनकी बेटी ने की. उन्होंने 75 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले शरद यादव(Sharad Yadav) के जाने से जाना सभी दुखी हैं। उनकी समाजवाद वाली राजनीति ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया था। लेकिन अब उस महान नेता ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.उनका निधन गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में हुआ।आज दिनभर पार्थिव शरीर छतरपुर में स्थित 5 वेस्टर्न (डीएलएफ) आवास पर दर्शन के लिए रखा जाएगा।
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव में हुआ था जन्म
देश की सियासत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। 1 जुलाई 1947 को जन्मे शरद यादव ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया था। छात्र राजनीति से संसद तक का सफर तय करने वाले शरद यादव ने मध्य प्रदेश मूल का होते हुए भी अपने राजनीतिक गतविधि का केंद्र बिहार और उत्तर प्रदेश को बनाया। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया।

इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे
शरद इस दौरान राजनीति से प्रभावित हुए थे और उन्होंने न केवल कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज) के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। वे एक कुशल वक्ता भी थे। उन्होंने अपनी डिग्री गोल्ड मेडल के साथ पूरी की थी।
डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित थे
जब शरद यादव छात्र राजनीति में सक्रिय थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्रवाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की विचारधारा से खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर शरद ने अपने मुख्य राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में भाग लिया और आपातकाल के दौरान मीसा बंदी बनकर जेल भी गए।

27 की उम्र में पहली बार संसद पहुंचे
शरद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से हुई थी। वे कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे जबकि तीन बार राज्य सभा सदस्य चुने गए। वे 27 साल की उम्र में पहली बार 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट और बाद में बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गए।

2012 में मिला उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार
साल 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012’ मिला। हालांकि इसके बाद वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें बिहार की मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा। यहीं से शरद यादव की सियासत का सूर्यास्त होना शुरू हो गया। हालांकि उन्हें राज्यसभा भेजा गया।
1998 में जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई
शरद यादव जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। 1996 में बिहार से वे पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने। 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई और एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, जीवन के अंतिम पड़ाव में अपने घनिष्ठ सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से वाद विवाद भी हुआ। इसलिए, शरद यादव ने जेडीयू से नाता तोड़ लिया था।
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