एक दूसरे को सहयोग बिना कैसे जीतेंगी चुनावी समर!
दीपावली और छठ पर्व के कारण राजनीतिक पार्टियों का चुनावी तेवर भले ही पूरी तरह से नजर नहीं आ रहा है, लेकिन बात जो साफ-साफ दिख रही है, वह यह है कि गठबंधन में शामिल पार्टियां ‘गांठ खोलकर’ चुनाव लड़ रही हैं। कहने का मतलब यह है कि पार्टियों का गठबंधन तो है, लेकिन उनमें आपसी सहयोग बिल्कुल नदारद है। यह साफ लगने लगा है कि सिर्फ सत्ता पाने के लिए ही उनमें गठबंधन हैं। गठबंधनों में शामिल सभी पार्टियां जीत की कामना तो कर रही हैं, लेकिन जीत के लिए जो रणनीति होनी चाहिए, वह उनमें नजर नहीं आ रही है। ऐसा किसी एक गठबंधन के साथ नहीं है, ऐसा इंडी गठबंधन के साथ भी है तो एनडीए के साथ भी है।
प्रथम चरण के चुनाव प्रचार के लिए सभी पार्टियों और गठबंधन के पास सिर्फ और 11 दिन शेष हैं। यानी इन 11 दिनों में ही सभी को अपनी पूरी ताकत झोंकनी है। लेकिन किसी भी गठबंधन में तालमेल नजर नहीं आ रहा है। बात पहले एनडीए गठबंधन की करें। भाजपा ने 2024 के चुनाव में आजसू को अपने साथ लेकर अच्छा काम किया है। क्योंकि 2019 में अलग चुनाव लड़ने का खमियाजा वह भुगत चुकी है। लेकिन इस बार चुनाव जीतना है तो उसके लिए जरूरी है कि दोनों पार्टियां साथ मिलकर एक दूसरे को मदद करें। चुनाव प्रचार में एक दूसरे को सहयोग करें। क्योंकि अपेक्षित सफलता के लिए यह बेहद जरूरी है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि बड़े भाई को रूप में रहते हुए भाजपा चुनाव प्रचार में आजसू को सहयोग कर रही है। ऐसा ही कुछ एनडीए में शामिल जदयू और एलजीपी के साथ भी देखने को मिल सकता है। दीपावली के बाद भाजपा के बड़े नेता झारखंड दौरे पर आने वाले हैं, तब देखना होगा कि वे अपने सहयोगियों के लिए कितना चुनाव प्रचार करते हैं।
इंडी महागठबंधन की हालत को और भी विकट है। यहां तो तालमेल तो कहीं दिखता ही नहीं है। एनडीए में तो सीटों के बंटवारे को लेकर उतनी किच-किच नहीं हुई, लेकिन दोनों चरणों के नामांकन खत्म होने के बाद भी यह किच-किच अभी भी जारी है। सीटों का बंटवारा हो जाने के बाद भी इंडी गठबंधन में एक दूसरे के खिलाफ कुछ सीटों पर जिस तरह से प्रत्याशियों को उतारा गया, उससे भी यह साफ लगता है कि उनके अंदर कितना ‘तालमेल’ है। झामुमो जिसने खुद को गठबंधन में बड़ा भाई घोषित किया है उसके लिए दूसरी और छोटी पार्टियों का कितना महत्व है, यह सीट बंटवारे में देखा जा चुका है। कांग्रेस आज भी अपने आपको देश की सबसे बड़ी पार्टी मानती है, इसलिए उसकी ठसक अलग ही है। रही बात राजद की, तो राजद की बिहार में चाहे जो भी स्थिति है, झारखंड में उसे अपने वजूद की तलाश करनी पड़ रही है, लेकिन आंख दिखाने में इसने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे झारखंड में यही एक पार्टी है, जो फिलहाल खाली रहने के बाद गठबंधन की दूसरी पार्टियों की रैली में इसके नेता दिख जायें, लेकिन दूसरी पार्टियों से यह उम्मीद थोड़ी कम ही है कि वे अपने सहयोगियों की रैलियों और जनसभाओं में दिखें। भाजपा में यह तो थोड़ा-बहुत दिख जायेगा, लेकिन अपने तक सीमित झामुमो और कांग्रेस के लिए शायद ऐसा नहीं सोचा जा सकता।
खैर, राजनीति अब सिर्फ अवसरों के भुनाने तक सीमित रह गयी है, इसलिए कोई भी पार्टी अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ सकती। आज ही नहीं, आगे आने वाले चुनावों में ऐसा ही दिखेगा। चुनाव के परिणामों से इन पार्टियों की सोच के सही या गलत होने का अनुमान बिल्कुल ही नहीं किया जा सकता।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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