न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। कांग्रेस समेत देश के 18 विपक्षी दलों ने नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होने का ऐलान कर दिया। 18 विपक्षी दलों ने संयुक्त बयान जारी कर इसका ऐलान भी कर दिया है। संयुक्त बयान में विपक्षी दलों ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए अलोकतांत्रिक कृत्य कोई नई बात नहीं है, सत्ता पक्ष ने संसदीय समितियों को व्यावहारिक रूप से निष्क्रिय कर दिया है। नया संसद भवन एक सदी की सबसे बड़ी महामारी के दौरान बड़े खर्च से बनाया गया है, जिसमें भारत के लोगों या सांसदों से कोई परामर्श नहीं किया गया है, जिनके लिए यह स्पष्ट रूप से बनाया जा रहा है। बता दें, नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह की शुरुआत कांग्रेस ने यह कह कर की थी कि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री क्यों कर रहे हैं। सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान राष्ट्रपति के हाथों इसका उद्घाटन क्यों नहीं कराया जा रहा है। कांग्रेस के द्वारा शुरू किये गये इस विवाद में अब दूसरे विपक्षी दल भी कूद गये हैं।
विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त बयान में क्या कहा?
नए संसद भवन का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण अवसर है। हमारे इस विश्वास के बावजूद कि सरकार लोकतंत्र को खतरे में डाल रही है, और जिस निरंकुश तरीके से नई संसद का निर्माण किया गया था, उसकी हमारी अस्वीकृति के बावजूद हम अपने मतभेदों को दूर करने और इस अवसर को चिह्नित करने के लिए तैयार थे। हालाँकि, राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल एक गंभीर अपमा है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि “संघ के लिए एक संसद होगी जिसमें राष्ट्रपति और दो सदन होंगे जिन्हें क्रमशः राज्यों की परिषद और लोगों की सभा के रूप में जाना जाएगा।” राष्ट्रपति न केवल भारत में राज्य का प्रमुख होता है, बल्कि संसद का एक अभिन्न अंग भी होता है। वह संसद को बुलाती हैं, सत्रावसान करती हैं और संबोधित करती हैं। संक्षेप में, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती है। फिर भी, प्रधानमंत्री ने उनके बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है। यह अशोभनीय कृत्य राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान करता है, और संविधान के पाठ और भावना का उल्लंघन करता है। यह सम्मान के साथ सबको साथ लेकर चलने की उस भावना को कमज़ोर करता है जिसके तहत देश ने अपनी पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति का स्वागत किया था।
संसद को लगातार खोखला करने वाले प्रधानमंत्री के लिए अलोकतांत्रिक कृत्य कोई नई बात नहीं है। संसद के विपक्षी सदस्यों को अयोग्य, निलंबित और मौन कर दिया गया है जब उन्होंने भारत के लोगों के मुद्दों को उठाया। सत्ता पक्ष के सांसदों ने संसद को बाधित किया है। तीन कृषि कानूनों सहित कई विवादास्पद विधेयकों को लगभग बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया है और संसदीय समितियों को व्यावहारिक रूप से निष्क्रिय कर दिया गया है। नया संसद भवन सदी में एक बार आने वाली महामारी के दौरान बड़े खर्च पर बनाया गया है, जिसमें भारत के लोगों या सांसदों से कोई परामर्श नहीं किया गया है, जिनके लिए यह स्पष्ट रूप से बनाया जा रहा है।
जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता। हम संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं। हम इस निरंकुश प्रधान मंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ शब्दों और भावनाओं में लड़ना जारी रखेंगे, और अपना संदेश सीधे भारत के लोगों तक ले जाएंगे।
संयुक्त बयान में शामिल दल
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- द्राविड मुन्नेत्र कड़गम
- आम आदमी पार्टी
- शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे )
- समाजवादी पार्टी
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
- झारखंड मुक्ति मोर्चा
- केरल कांग्रेस (मणि)
- विदुथलाई चिरुथिगल कच्ची
- राष्ट्रीय लोकदल
- तृणमूल कांग्रेस
- जनता दल (यूनाइटेड)
- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
- राष्ट्रीय जनता दल
- इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग
- नेशनल कांफ्रेंस
- रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी
- मारुलाच द्राविड मुन्नेत्र कड़गम
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