गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में बहु चर्चित और बहु प्रतीक्षित बिल ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को मंजूरी मिल गयी है। अब सरकार इसे इसी सत्र में लाने की तैयारी कर रही है। लोकसभा में एनडीए अपने संख्या के बल पर इसे पास करा लेगी। राज्यसभा से भी इसका पास हो जाना असम्भव नहीं है। इसके बाद इसकी असल परीक्षा राज्यों में होगी। क्योंकि किसी भी बिल को कानून बनने के लिए 50 फीसदी राज्यों का समर्थन जरूरी है। इसके बिना यह कानून नहीं बन सकता। तो क्या भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार के लिए आधे से अधिक राज्यों का समर्थन बिल पर जुटा पाना आसान होगा। तो आइए, एक बार देख लेते हैं कि राज्यों में सत्ता और सत्ताधारी पार्टियों की क्या स्थिति है। इससे यह अनुमान लग जायेगा कि वन नेशन वन इलेक्शन बिल को कानून बना पाना केन्द्र सरकार के लिए कितना आसान और कितना कठिन होगा।
एक देश एक चुनाव लागू होने के बाद क्या होगा?
बता दें कि देश में 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे, लेकिन बाद में केंद्र और कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन की वजह से सरकारों के गिरने के कारण वन नेशन वन इलेक्शन नहीं हो सका। अब जो वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था लागू किये जाने की बात कही जा रही है, उसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ होंगे और इसके 100 दिन के भीतर देशभर में स्थानीय निकायों के चुनाव कराने का प्रस्ताव है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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